सत्यार्थ प्रकाश का उद्देश्य एवं इसकी विशेषता
ओ३म्
टंकारा निवासी वयोवृद्ध श्री दयाल मुनि जी महर्षि दयानन्द रचित वैदिक साहित्य के उच्च कोटि के विद्वान एवं ऋषिभक्त हैं। आपने चारों वेदों के गुजराती भाषा में अनुवाद सहित अनेक ग्रन्थों का सृजन वा रचना की है। ‘सत्यार्थ प्रकाश की तेज धाराएं’ आपका गुजराती भाषा का एक लघु ग्रन्थ है जिसका अनुवाद श्री आर्य रणसिंह यादव ने किया है और यह 48 पृष्ठीय पुस्तक ‘वानप्रस्थ साधक आश्रम, रोजड़’ से प्रकाशित हुई है। यह पूरी पुस्तक महत्वपूर्ण व उपयोगी होने के साथ पाठकों के लिए पठनीय है। इस संक्षिप्त लेख में हम इस पुस्तक से एक पैरा प्रस्तुत कर रहे हैं और आशा करते हैं कि यह पाठकों को भी पसन्द आयेगा। इन पंक्तियों में लेखक ने सत्यार्थ प्रकाश के यथार्थ महत्व पर बहुत ही सरल व प्रभावकारी शब्दों में प्रकाश डाला है। लेखक ने लिखा है कि ‘महर्षि दयानन्द का सत्यार्थ प्रकाश की रचना करने का महान उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति को एक वैदिक मानवधर्म के झण्डे के नीचे एकत्रित करना था। इसके लिए मजहब, पंथ, सम्प्रदायों को धर्म में परिवर्तित करना यह उनका लक्ष्य था। कारण कि सम्प्रदायों का आधार धर्म है, परन्तु इनकी विकृतियों, रूढ़ियों और अन्धविश्वासों ने धर्म को हिन्दु–ईसाई–मुस्लिम आदि मजहबों में रूपान्तरित कर दिया है। जो इन विकृतियों को दूर कर दिया जाय तो सम्पूर्ण मानवजाति को एक धर्मी बनाया जा सकता है।’
इन थोड़े से शब्दों में लेखक ने प्रथम बात यह कही है कि सत्यार्थ ग्रन्थ की रचना महर्षि दयानन्द ने इस उद्देश्य को सम्मुख रख कर की कि जिससे सम्पूर्ण मानव जाति को एक वैदिक मानवधर्म के झण्डे के नीचे एकत्रित वा संगठित किया जा सके। महर्षि दयानन्द का जीवन चरित व सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ कर लेखक द्वारा कही यह सभी बातें पाठकों के सामने आती है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि महर्षि दयानन्द जी का लक्ष्य संसार में प्रचलित सभी मजहब, पंथ व सम्प्रदायों की मिथ्या मान्यताओं को हटाकर उन सबको एक शुद्ध धर्म में परिवर्तित करना था। इस सन्दर्भ में विद्वान लेखक पाठकों को यह बताते हैं कि सभी सम्प्रदायों, मत व पन्थों का आधार धर्म है। यह धर्म कौन सा है तो इसका उत्तर है कि यह यथार्थ धर्म वैदिक सनातन धर्म है। इस पूर्व महाभारत कालीन वैदिक धर्म की विकृतियां, रूढ़ियां और अन्धविश्वास ही मत, पन्थ, सम्प्रदाय व मजहब हैं जिन्होंने मनुष्यों को हिन्दु–ईसाई–मुस्लिम आदि अनेक मजहबों आदि में रूपान्तरित कर दिया है। विद्वान ऋषि भक्त विद्वान पं. दयाल मुनि जी के अनुसार यदि मत–पंथ–सम्प्रदाय और मजहब की इन समस्त कुरीतियों, विकृतियों, अन्धविश्वासों व रूढ़ियों को दूर कर दिया जाये तो जो शेष रहेगा वही एक धर्म होगा। अतः सभी मत–पन्थों की रूढ़ि आदि विकृतियों को हटाना महर्षि दयानन्द और उनके सत्यार्थ प्रकाश का उद्देश्य था व आज भी है।
हम आशा करते हैं कि पाठक श्री दयाल मुनि आर्य जी के विचारों को उपयोगी व महत्वपूर्ण पायेंगे।
–मनमोहन कुमार आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी लेख पसंद करने व प्रतिक्रिया देने के लिए।
मनमोहन भाई , लेख अच्छा लगा . पाखंड अंधविश्वास और एक दुसरे से नफरत ख़तम हो जाये तो धर्म सबी अछे हैं, वर्ना धर्म परीवर्तन से कुछ नहीं होगा .
नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। मनुष्यों का धर्म एक है। जिससे मनुष्यों के बीच नफरत पैदा हो व जिनसे पाखण्ड व अंधविस्वास उत्पन्न हो वह धर्म नहीं अपितु धर्म की विकृतिया हैं। यह समाप्त हो जाएँ तभी वह मत व पंथ धर्म कहला सकता है। आपकी उपयोगी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। सादर।