गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सहर का ख़ाब देखा तीरगी  में
ख़ुशी से चीख़ उट्ठा बेख़ुदी में

हुआ हैरान जुगनू देख कर मैं
मुसलसल जी रहा था तीरग़ी में

उलझ कर रह गए सारे मसाइल
तेरी मासूम आँखों की नमी में

सदाओ ! तुम रखो होठों पे ऊँगली
अभी खोया हूँ मैं इस ख़ामुशी में

उबल उट्ठा अचानक सर्द पानी
गिरी इक बूँद आँखों से नदी में

चुराया तो था हमने चाँद लेकिन
वहीँ पर छोड़ आये हड़बड़ी में

ज़रा सा ग़ौर करके फैसला लो
दिखेगा क्या निगाहे – सरसरी में?

ज़रा सा सब्र ‘कान्हा’ और रक्खो
सहर होने को है कुछ देर ही में

प्रखर मालवीय “कान्हा”

प्रखर मालवीय 'कान्हा'

नाम- प्रखर मालवीय कान्हा पिता का नाम - श्री उदय नारायण मालवीय जन्म : चौबे बरोही , रसूलपुर नन्दलाल , आज़मगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) में 14 नवंबर 1991 को । वर्तमान निवास - दिल्ली शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़ से हुई. बरेली कॉलेज बरेली से बीकॉम और शिब्ली नेशनल कॉलेज आजमगढ़ से एमकॉम। सृजन : अमर उजाला, हिंदुस्तान , लफ़्ज़ , हिमतरू, गृहलक्ष्मी , कादम्बनी इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ। 'दस्तक' और 'ग़ज़ल के फलक पर ' नाम से दो साझा ग़ज़ल संकलन भी प्रकाशित। संप्रति : नोएडा से सीए की ट्रेनिंग और स्वतंत्र लेखन। संपर्क : [email protected] ) 9911568839

One thought on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल अछि लगी .

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