ईश्वर का मिलना मुश्किल नहीं है
ओ३म्
कुंवर सुखलाल आर्यमुसाफिर (1890-1981) आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध गीतकार व भजनोपदेशकों में से एक प्रमुख भजनोपदेशक थे। आपने अपने जीवनकाल में देशभर में भजन व उपदेशों के द्वारा प्रभावशाली प्रचार किया। आपकी यह विशेषता थी कि जिस मंच पर आप उपस्थित होते थे वहां श्रोता अन्य किसी विद्वान उपदेशक से व्याख्यान सुनना ही नहीं चाहते थे। आपने बहुत प्रभावशाली गीतों व भजनों की रचना की है। यह प्रसन्नता की बात है कि अभी कुछ समय पूर्व उनके एक भक्त और दानवीर ठाकुर विक्रम सिंह जी ने ‘सिंह गर्जना’ नाम से कुवंर सुखलाल जी के ऐतिहासिक भाषणों एवं क्रान्तिकारी गीतों का संकलन प्रकाशित किया है। आज हम यहां उपर्युक्त शीर्षक का उनका एक प्रसिद्ध गीत प्रस्तुत कर रहें हैं। सन् 1979 की बात है कि हमने अपने कार्यालय भारतीय पेट्रोलयम संस्थान, देहरादून में अपने मित्रों के सहयोग से आर्य संन्यासी स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती जी, पूर्व सांसद का एक प्रवचन आयोजित किया था। इस अवसर पर मुरादाबाद के एक भजनोपदेशक भी हमें इस कार्यक्रम में गीत प्रस्तुत करने के लिए उपलब्ध हो गये थे। उन्होंने कुंवर सुखलाल जी का यही प्रसिद्ध गीत प्रस्तुत किया था। इस गीत को भजनोपदेशक महोदय ने बहुत ही प्रभावशाली अन्दाज में प्रस्तुत किया था जिसकी स्मृति यदा-कदा उपस्थित होती रहती है। उनका यह प्रसिद्ध गीत प्रस्तुत है।
अगर पाप में आपका दिल जो नहीं है।
तो ईश्वर का मिलना भी मुश्किल नहीं है।।
न हो उसकी मखलूक से प्यार जिसको।
वो आदमी कहाने के काबिल नहीं है।।
तुझे दुनियां काबू में कर लेगी नादां।
जो काबू में तेरे अपना दिल ही नहीं है।।
ये हस्ती है किसकी तू रहता है जिसमें।
अगर उसकी हस्ती का कायल नहीं है।।
जिसे दुनियां कहते हैं अय दुनियां वालों।
ये रणक्षेत्र है कोई महफिल नहीं है।।
जिसे मरना आता नहीं राहे हक में।
वो नामर्द हैं, मर्दे काबिल नहीं है।।
हथेली पे हो जिसका सर इसमें कूदे।
ये किस्ती है वो जिसका साहिल नहीं है।
‘मुसाफिर’ है तू हार हरगिज न हिम्मत।
जरा और चल दूर मंजिल नहीं है।।
हम आशा करते हैं कि पाठक इस भजन के शब्दों व उसके अर्थों में जो सन्देश हैं उसे समझ कर इसका भरपूर आनन्द लेंगे।
–मनमोहन कुमार आर्य
इस कविता की शब्दाबली अछि लगी .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी,
अगर पाप में आपका दिल जो नहीं है।
तो ईश्वर का मिलना भी मुश्किल नहीं है.
मुसाफिर’ है तू हार हरगिज न हिम्मत।
जरा और चल दूर मंजिल नहीं है.
अति सुंदर व सार्थक आलेख के लिए आभार.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।