गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है

ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है,
रोज़ देती सजा सी लगती है।
रौनकें सुबह की हैं कुछ फीकी,
शाम भी बेमज़ा सी लगती है।
राह जिस पर चले थे हम अब तक,
आज वह बेवफ़ा सी लगती है।
संदली उस बदन की खुशबू भी,
आज मुझको कज़ा सी लगती है।
दर्द जो भी मिला है दुनिया में,
यार तेरी रज़ा सी लगती है।
 
…© कैलाश शर्मा 

कैलाश शर्मा

केंद्रीय सचिवालय सेवा एवं सार्वजनिक बैंक में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य करने के पश्चात सम्प्रति सेवा निवृत. ‘श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)’ पुस्तक प्रकाशित. ब्लॉग लेखन के अतिरिक्त विभिन्न पत्र/ पत्रिकाओं, काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित. वर्ष के श्रेष्ठ बाल कथा लेखन के लिए ‘तस्लीम परिकल्पना सम्मान – २०११’.