उपन्यास अंश

अधूरी कहानी:अध्याय-41: रिश्ते में दरार

समीर को ऐसा लग रहा था कि आज उसने सब कुछ खो दिया हो समीर बोला मैं रेनुका को भूलने लग गया था और वो भी इसलिए कि अब उसकी शादी हो गयी होगी और रेनुका खुश होगी अगर मुझे पता होता कि वो मुझे नहीं भूल पायेगी तो मैं उससे मिलने की कोशिश जरूर करता और वो शायद आज जिंदा होती समीर टूट सा गया और वह स्नेहा को बिना बताये अपने घर चले गया तथा स्नेहा से बात करना बंद कर दिया। समीर से स्नेहा की बात नहीं हो पा रही थी तब स्नेहा को चिंता होने लगी तथा कहीं भी उसका मन नहीं लगता था।ऐसा कब तक चलता आखिर कुछ दिन बाद समीर के घर आ धमकी स्नेहा ने अपने आप को समीर का दोस्त बताया समीर के घर वालों ने स्नेहा का स्वागत किया समीर के मम्मी-पापा स्नेहा से बातें करने लगी और काॅफी भी आ चुकी थी।तब समीर की मम्मी ने पूछा बेटा तुम इसी शहर में रहती हो तब समीर के पापा बात काटते हुये बोले कि S.R.K. इंडस्ट्रीज के नाम से जो फैक्ट्री हैं जो आजकल S.S.M.K. इंडस्ट्रीज के नाम से जानी जाती हैं तो स्नेहा राज इसकी मालिक हैं बदकिश्मती से इनके पिता कुछ समय पहले चल बसे तबसे यही वह कंपनी संभालती हैं मैंने ठीक कहा न स्नेहा तब स्नेहा ने हाँ कहते हुये बात पूरी की।
स्नेहा बोली अंकल समीर कहां हैं कहीं दिख नहीं रहा है तब समीर के पापा बोले कि वो तो दिन पहले ही यहां से चला गया तब स्नेहा बोली चला गया मतलब ऐसे कैसे चला गया तब समीर के पापा बोले अरे बाबा वह ट्रेनिंग के लिये श्रीनगर गया है तब स्नेहा बोली अंकल आपके पास उसका कोई फोन नम्बर या और कुछ जिससे उससे बात हो सके तब समीर ने स्नेहा को एक लैडलाईन नम्बर दिया फिर स्नेहा बोली अच्छा अंकल मैं चलती हूं तब समीर की मम्मी बोली बेटा तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा खाली समय में यहां आती रहना और वे लोग स्नेहा को बाहर तक छोड़ने आये स्नेहा कार में बैठी और समीर के मम्मी-पापा को बाॅय बोलकर वहां से चली गयी।
स्नेहा ने रात को करीब नौ बजे उस लैडलाईन नम्बर पर काॅल की तब उधर से आवाज आयी हैलो तब स्नेहा बोली क्या मैं समीर मल्होत्रा से बात कर सकती हूं तब वह आदमी बोला हाँ मैं अभी बुलाता हूं वह आदमी समीर के पास गया और बोला सर आपके लिये फोन है समीर ने जैसे ही फोन कान से लगाया और सुनने लगा तब स्नेहा बोली समीर मैं स्नेहा बोल रहीं हूं समीर तुम ठीक तो हो तुमने मुझे बताया तक नहीं कि तुम ट्रेनिंग जा रहे हो समीर तुम्हें पता हैं कि मेरे हर दिन की शुरूआत तुमसे होती है मैं तुमसे जब तक बात न कर लूं तब तक मेरा किसी काम में मन नहीं लगता तुम्हें ये पता है फिर भी तुम मुझे सताते हो न जाने क्या बात हो गयी जो तुम मुझसे बात नहीं कर रहे हो पर समीर मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती समीर तुम सुन रहे ही न तब समीर बोला राॅग नम्बर और फोन काट दिया।
स्नेहा समीर की आवाज तो पहचान गयी थी पर उसे ये नहीं पता था कि समीर उससे ऐसे पेस क्यों आ रहा है उसे समीर का ऐसे पेस आना बहुत खल रहा था अब तो उसका मन आॅफिस में भी नहीं लगता था और ये बात समीर को भी पता थी कि सनेहा का क्या हाल होगा।पर समीर को हम जगह रेनुका की तस्वीर नजर आती थी रेनुका की यादें उसमें घर कर गयी थी और उसे लगा कि इस वजह से स्नेहा उसके साथ खुश नहीं रह पायेगी इसलिए वह स्नेहा से रूखा व्यवहार कर रहा था जिससे स्नेहा समीर को भूलने लगे ।
कुछ दिन बाद समीर आ चुका थोड़ा और डियूटी भी ज्वाॅइन कर ली थी एक दिन स्नेहा ने समीर को फोन किया और उस जगह मिलने को बुलाया जहां वह पहली बार मिले थे स्नेहा वहां पहुँच गयी और समीर का इंतज़ार करने लगी तब तक समीर भी आ पहुँचा स्नेहा ने समीर को आते ही गले लगा लिया और बोली समीर तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती फिर भी तुम मुझे अवोइड क्यों करते हो क्यों मुझे इतना सताते हो तब समीर स्नेहा को धक्का देते हुये जोर से बोला अगर तुम मुझे न मिली होतीं तो मै रेनुका को मिलने की कोशिश जरूर करता और तब शायद वो आज जिंदा होती तब स्नेहा बोली तो तुम रेनुका की मौत का जिम्मेदार मुझे मानते हो पर समीर ये गलत है तुम्हें गलतफहमी हुई है पर समीर अपनी बात पर अडिग रहा क्योंकि वह जानता था कि वह स्नेहा को छोड़ने की बात करेगा तो वह यह सहन नही कर पायेगी ।इसलिए उसने ये झूठ स्नेहा पर थोप दिया ताकी वह कहीं और शादी कर ले और खुश रहे।समीर स्नेहा से बोला कि तुम मुझे कभी सक्ल मत दिखाना अपनी तब स्नेहा बोली ठीक है अगर तुम इसी में खुश होगाड़ी तो मैं कभी नहीं मिलूगी तुमसे यह सुनकर समीर आंशू पोछते हुए गाड़ी में आ बैठा और बड़ी जोर से रोने लगा फिर समीर ने गाड़ी घुमायी और चले गया स्नेहा रोती हुई समीर को जाता तब तक देखती रही जब तक समीर की गाड़ी स्नेहा की आंखों से ओछल न हो गई।

दयाल कुशवाह

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