ईश्वर द्वारा दिया गया ज्ञान केवल वेद है अन्य नहीं: स्वामी श्रद्धानन्द
ओ३म्
देहरादून स्थित श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योर्तिमठ गुरुकुल के वार्षिकोत्सव में 3 जून के अपरान्ह के सत्र में वेद वेदांग सम्मेलन आयोजित किया गया। इसे सम्बोधित करते हुए सुप्रसिद्ध विद्वान स्वामी श्रद्धानन्द, आचार्य गुरुकुल गोमत अलीगढ़ ने कहा कि महर्षि दयानन्द के आगमन से पूर्व वागमार्गी वेदों को गड़रियों के गीत बताते थे। समाज में बाल विवाह व अनेक कुरीतियां प्रचलित थी। इन कुरीतियों के बारे में जब लोगों से पूछा जाता था तो वह कहते थे कि ऐसा करना वेदों में लिखा है। यदि कोई बाल विवाहित विधवा हो जाती थी तो समाज द्वारा उसे सती होने के लिए विवश किया जाता था। हमारे पौराणिक विद्वान कहा करते थे कि गोमेघ, अजामेघ, अश्वमेघ व नरमेघ यज्ञों की आज्ञा वेदों में है। महात्मा बुद्ध ने जब यज्ञों में की जाने वाली हिंसा से व्यथित होकर याज्ञिकों से प्रश्न किये तो उन्हें उत्तर मिला कि ऐसे यज्ञों को करने का वेदों में विधान है। यह सुनकर महात्मा बुद्ध बोले कि मैं ऐसे वेदों को, जिसमें पशु हिंसा की आज्ञा हो, नहीं मानता। विद्वान वक्ता ने महात्मा बुद्ध जी के अजातशत्रु के पास जाने व उनसे वार्तालाप की कथा सुनाई। उन्होंने अजातशत्रु से प्रश्न किया कि तुम यज्ञों में पशु हिंसा क्यों करते हो? उनको दिये गये उत्तर से सहमत न होने पर महात्मा बुद्ध ने अजातत्रु को एक तिनका दिया और कहा कि इसके दो टुकड़े कर दो। फिर उन्होंने उन दो टुकड़ों को जोड़कर एक टुकड़ा करने को कहा। अजातशत्रु ने उन तो टुकड़ों को जोड़ने में अपनी असमर्थता बताई। इस पर महात्मा बुद्ध बोले कि यदि तुम टुटे हुए को जोड़़ नहीं सकते तो तोड़ते क्यों हो? अजात शत्रु उनके तर्कों से प्रभावित हुआ और उसने यज्ञ के सभी पशुओं भेड व बकरियों को मुक्त कर दिया। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा कि यदि महात्मा बुद्ध वेद पढ़े हुए होते तो समाज का कल्याण होता। वेदों के यथार्थ स्वरुप से अनभिज्ञ महाबुद्ध नास्तिक बन गये जिससे देश का नुकसान हुआ।
स्वामी श्रद्धानन्द ने ऋषि दयानन्द की चर्चा कर उनके कार्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेदों का अध्ययन कर उसके यथार्थ स्वरुप का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि पौराणिक पंडितों व विद्वानों ने वेदों का यथार्थ स्वरुप जाने बिना ही यज्ञों में पशुओं की हिंसा का प्रचारित किया परन्तु आज महर्षि दयानन्द जी की कृपा से अधिकांश पौराणिक मान्यतायें असत्य व व्यर्थ सिद्ध हुईं हैं। स्वामी जी ने श्रोताओं को कहा कि हमें वेदानुकूल आर्य विचारधारा वाले परिवारों का निर्माण करना चाहिये। स्वामी जी ने स्वामी दयानन्द के शब्दों को भी प्रस्तुत किया कि चार वेद ईश्वरीय ज्ञान हैं व सब सत्य विद्याओं की पुस्तक हैं। उन्होंने कहा कि मनुस्मृति के प्रणेता महाराज मनु के अनुसार वेद धर्म का मूल है। वेद साम्प्रदायिक ज्ञान नहीं है। वेदों का ज्ञान मनुष्यकृत न होकर ईश्वरकृत ज्ञान है। इन वैदिक सिद्धान्तों का स्वामी श्रद्धानन्द ने विस्तार से वर्णन किया। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने आगे कहा कि परमात्मा व आत्मा के सत्य स्वरुप को जाने बिना जीवात्मा की मुक्ति नहीं होती। जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है तथा फल भोगने में परतन्त्र अर्थात् ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है। उन्होंने कहा कि वेदों की आज्ञाओं का पालन न करने वा उसके विरुद्ध आचरण करने से दण्ड मिलता है। परमात्मा ने वेदों का ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में दिया था। उन्होंने बताया कि वेद ज्ञान, विचार, लाभ और सत्ता से युक्त हैं। स्वामी जी ने यह भी बताया कि ईश्वर द्वारा दिया गया ज्ञान केवल वेद ही हैं अन्य नहीं। वेद से इतर सभी धार्मिक ग्रन्थों को उन्होंने साम्प्रादियक ग्रन्थ बताया। स्वामी जी ने कहा कि वेद में दो प्रकार की बातें हैं प्रथम विधेय व दूसरी निषेध। उन्होंने कहा कि नागरिकों को संविधान के विरुद्ध कार्य करने पर दण्ड मिलता है। इसी प्रकार वेद की अवहेलना करने पर भी ईश्वरीय व्यवस्था से दण्ड मिलेगा। वैदिक आज्ञाओं का पालन यदि नहीं करेंगे तो हमें अगला जन्म मनुष्य का नहीं मिलेगा।
स्वामी जी ने कहा कि वेदों में यज्ञ करने का उपदेश दिया गया है। वेद सभी मनुष्यों को सत्य बोलना व सत्याचरण करना सिखाता है। वेद सम्मत गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली देश में चलेगी तो विद्या की रक्षा होगी। स्वामीजी ने कहा कि वेद में परा व अपरा दो प्रकार की विद्यायें हैं। इन्हें आध्यात्मिक व भौतिक ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है। स्वामी जी ने सभी श्रोताओं को वेदों का स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति परा व अपरा विद्याओं की खोज करना चाहे तो उसके लिए वेद परम प्रमाण हैं। वेद स्वतः प्रमाण हैं जिसकी पुष्टि के लिए अन्य प्रमाणों की आवश्यकता नहीं होती जबकि वेद से इतर अन्य सभी ग्रन्थ परतः प्रमाण की कोटि में आते हैं जिसके लिए वेद आदि ग्रन्थों के प्रमाणों की आवश्यकता होती है। स्वामीजी ने कहा कि मनुस्मृति के अध्ययन व सत्पुरुषों के आचरण को देखकर भी सत्य व सदाचरण का निर्णय किया जा सकता है। जो बात आत्मा को प्रिय लगती है वह भी सत्य हो सकती है। स्वामी जी ने चार वेदों के उपवेदों की चर्चा कर बताया कि आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्व वेद आदि उपवेद हैं। हमें वेदों का नित्य प्रति स्वाध्याय करना चाहिये। स्वामी जी ने ज्योतिष की चर्चा कर खगोल ज्योतिष को उपयोगी बताया और फलित ज्योतिष का खण्डन किया। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि हमें ग्रहों के प्रभाव से नहीं अपितु अपने कर्मों से सुख व दुःखों की प्राप्ति होती है।
प्रस्तुतकर्ता–मनमोहन कुमार आर्य