कविता

कविता : तुम्हारे हाथों की लकीरों में…

इससे पहले कि मैं बुझ जाती
मेरी आखिरी लौ को अपनी हथेलियों में
छुपा लिया था तुमने…
और शायद वही एक पल था
जब मैं बस गई थी
तुम्हारे हाथों की लकीरों में
उस वक़्त शायद तुम्हें
जरूरत थी मेरी रौशनी की
वहाँ कुछ अंधेरा सा था
और हम दोनों हीं खुद से
घबड़ाये हुए थे उस अंधेरे में
फिर भी मैं रौशन कर गई थी
तुम्हारे साथ तुम्हारे घर को
और मेरे निश्चल प्यार के प्रकाश से
जगमगा उठे थे तुम…
मेरी चाहत थी ताउम्…
तुम्हारे संग जगमगाने की
मैं एक नन्ही शमा अपने बुलंद इरादों के साथ
जलती रही उम्र भर तुम्हें निहारते हुए
क्यूंकि एक दिन मेरी आखिरी लौ को
अपनी हथेलियों में छुपा लिया था तुमने…
अटूट प्यार से निहारा था तुमने मुझे
उस अंधेरी रात में ना जाने कितनी देर तक
वो पल आज भी मेरे दिल-ओ-दिमाग में
अंकित हैं…मुझे याद है मेरी ज़िंदगी का
अंतिम दिन…जब तुम्हें लगा
कि तुम्हारे जीवन में रौशनी फैलाने वाली
इस लौ में अब पहली सी चमक नही रही
जो तुम्हारी ज़िंदगी के गहन अँधेरों में
तुम्हें रास्ता दिखा सके….
जिसे तुमने हीं बचाया था एक रोज़
अपनी हथेलियों में छुपा कर…
मेरी अंतिम कंपकपाती लौ को
देर तक निहारा था तुमने
शायद तुम्हारी अतृप्त अभिलाषाओं नें
तुम्हें मजबूर कर दिया था मुझे मिटाने पर
अंतिम पलों में जब ज़ोर से काँपी थी लौ मेरी
तब तुमने अँधेरों के डर से
खत्म कर दिया था मेरा वजूद
एक नई शमा जला कर…
उसी जगह…उसी तरह जैसे मुझे जलाया था
और बुझ गई थी मैं बिन कुछ कहे
क्यूंकि एक रात मेरी आखिरी लौ को
तुमने हीं तो छुपाया था अपनी हथेलियों में
और शायद वही एक पल था जब मैं
बस गई थी तुम्हारे हाथों की लकीरों में
पर कभी ढूंढ नहीं पाई उन लकीरों से होकर
तुम तक आने का रास्ता….!!!

रश्मि अभय

रश्मि अभय

नाम-रश्मि अभय पिता-श्री देवेंद्र कुमार अभय माता-स्वर्गीय सुशीला अभय पति-श्री प्रमोद कुमार पुत्र-आकर्ष दिवयम शिक्षा-स्नातक, एलएलबी, Bachelor of Mass Communication & Journalism पेशा-पत्रकार ब्यूरो चीफ़ 'शार्प रिपोर्टर' (बिहार) पुस्तकें- सूरज के छिपने तक (प्रकाशित) मेरी अनुभूति (प्रकाशित) महाराजगंज के मालवीय उमाशंकर प्रसाद,स्मृति ग्रंथ (प्रकाशित) कुछ एहसास...तेरे मेरे दरम्यान (शीघ्र प्रकाशित) निवास-पटना मोबाइल-09471026423 मेल [email protected]