कविता
स्वच्छंद घूमती हो
बावली की तरह
डर लगता है
सिरफिरे भौंरे
छीन न ले
खुशियाँ
दे ना जाए जख्म
सिसकियाँ
ताउम्र के लिए
सिरफिरा भौरा
हमेशा चाहेगा
कली पर बैठना
इसलिए
जरूरत है
अपने दामन को बचाना
सिरफिरे भौंरों से !!!
@ मुकेश कुमार सिन्हा, गया