कटते बाग
उजड़ती धरती
रूठता मेघ॥-1
लगाओ पेड़
जिलाओ तो जीवन
बरसे मेह॥-2
बरसों मेघा
पवन पुरवाई
धरा तृप्त हो॥-3
काला बादल
छाया रहा घनेरा
आस जगी है॥-4
नहीं भूलती
वो बरसाती रात
बहता पानी॥-5
बहा ले गई
भावनाओं को साथ
शिथिल पानी॥-6
धरती मौन
गरजता बादल
पानी दे पानी॥-7
देखो तो आज
चली है पुरुवाई
बदरी छाई॥-8
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
सुन्दर हाइकु!
सादर धन्यवाद आदरणीय अर्जुन सिंह नेगी जी, स्वागत है सर हार्दिक आभार