तीर्थ का वास्तविक अर्थ
तीर्थ शब्द का अर्थ प्राय: लोग गंगा स्नान, पुष्कर, हरिद्वार, बाला जी,अमरनाथ,वैष्णो देवी,केदारनाथ ,बद्रीनाथ, तिरुपति बाला जी आदि की यात्रा अथवा सूर्य ग्रहण पर कुरुक्षेत्र आदि की यात्रा से करते हैं. तीर्थों में स्नान आदि से धार्मिक पुस्तकों में लाभों का वर्णन किया गया हैं जैसे जो सैकड़ों सहस्त्रों कोश दूर से भी गंगा-गंगा कहें, तो उसके पाप नष्ट होकर वह विष्णुलोक अर्थात वैकुण्ठ को जाता हैं (ब्रहम पुराण १७५/८२) (पदम् पुराण उत्तर खंड २३/२)
पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गंगा और मगध देश में स्नान करके प्राणी अपनी सात पूर्व की और सात परली पीढ़ियों कप तार लेता हैं. गंगा नाम लेने से पाप से बचाती हैं, दिखने पर हर्ष देती हैं, स्नान करने और पीने से सातवें कुल तक पवित्र कर देती हैं. (महाभारत वन पर्व अ ७५)
कलियुग में गंगा दर्शन से सौ जन्मों के पाप, स्पर्श करने से दो सौ जन्मों के पाप और स्नान तथा पीने से हजारों पाप नष्ट करती हैं. (आदि पुराण पृ ७२)
जो मनुष्य पूर्व आयु में पाप करके पीछे से गंगा का सेवन करते, वे भी परमगति पाते हैं. (महाभारत अनु २६/३०)
जैसे गरुण के देखते ही साँप विषरहित हो जाते हैं , वैसे ही गंगा के देखते ही मनुष्य सब पापों से छुट जाते हैं (वही ४४)
हवा से उड़े हुए धूलिकण भी कुरुक्षेत्र में जिस किसी पर पड़ेगे, वे अति पापी को मोक्ष में पहुँचा देंगे. (महाभारत वनपर्व अ ८३)
इस प्रकार अनेक प्रमाण महाभारत ,पुराण आदि ग्रंथों में मिलते हैं जिनमे विभिन्न स्थानों में गंगा आदि में स्नान को तीर्थ कहाँ गया हैं .
महर्षि दयानन्द जी ने लिखा है –
● वेदादि सत्य शास्त्रों का पढ़ना-पढ़ाना, धार्मिक विद्वानों का संग, परोपकार, धर्मानुष्ठान, योगाभ्यास, निर्वैर, निष्कपट, सत्यभाषण, सत्य का मानना। सत्य करना । ब्रह्मचर्य, आचार्य, अतिथि, माता, पिता की सेवा। परमेश्वर की स्तुति प्रार्थना, उपासना । शान्ति, जितेन्द्रियता, सुशीलता, धर्मयुक्त पुरुषार्थ, ज्ञान-विज्ञान आदि शुभगुण, कर्म दुःखों से तारने वाले होने से तीर्थ हैं । और जो जल स्थलमय हैं वे तीर्थ कभी नहीं हो सकते क्योंकि ‘जना यैस्तरन्ति तानि तीर्थानि’ मनुष्य जिन करके दुःखों से तरें उन का नाम तीर्थ है । जल स्थल तराने वाले नहीं किन्तु डुबाकर मारने वाले हैं । प्रत्युत नौका आदि का नाम तीर्थ हो सकता है क्योंकि उन से भी समुद्र आदि को तरते हैं । (११वां समुल्लास)
● ‘तीर्थ’ जिस से दुःखसागर से पार उतरें कि जो सत्यभाषण, विद्या, सत्संग, यमादि, योगाभ्यास, पुरुषार्थ, विद्यादानादि शुभ कर्म है उसी को तीर्थ समझता हूँ; इतर जलस्थलादि को नहीं । (स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश)
● ‘तीर्थ’ शब्द का अर्थ अन्यथा जान के अज्ञानियों ने जगत् के लूटने और अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए मिथ्याचार कर रक्खा है । सो ठीक नहीं, क्योंकि जो-जो सत्य तीर्थ हैं, वे सब नीचे लिखे जाते हैं – देखो ‘तीर्थ’ नाम उनका है कि जिनसे जीव दुःखरूप समुद्र को तरके सुख को प्राप्त हों । अर्थात् जो-जो वेदादिशास्त्र प्रतिपादित तीर्थ हैं, तथा जिन का आर्यों ने अनुष्ठान किया है, जो कि जीवों को दुःखों से छुड़ा के उनके सुखों के साधन हैं, उन्हीं को ‘तीर्थ’ कहते हैं । (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ग्रन्थ प्रामाण्याप्रामाण्य विषय)
मनुस्मृति ५/१०९ में मनु महाराज कहते हैं की जल से शरीर शुद्ध होता हैं, मन और आत्मा नहीं. मन तो सत्याचरण- सत्य मानने, सत्य बोलते सत्य ही करने से पवित्र होता हैं, जीवात्मा विद्या, योगाभ्यास और धर्माचरण से पवित्र होता हैं और बुद्धि पृथ्वी से लेकर परमेश्वर पर्यंत पदार्थों के ज्ञान से पवित्र होती हैं.
● वेदादि सत्य शास्त्रों का पढ़ना-पढ़ाना, धार्मिक विद्वानों का संग, परोपकार, धर्मानुष्ठान, योगाभ्यास, निर्वैर, निष्कपट, सत्यभाषण, सत्य का मानना। सत्य करना । ब्रह्मचर्य, आचार्य, अतिथि, माता, पिता की सेवा। परमेश्वर की स्तुति प्रार्थना, उपासना । शान्ति, जितेन्द्रियता, सुशीलता, धर्मयुक्त पुरुषार्थ, ज्ञान-विज्ञान आदि शुभगुण, कर्म दुःखों से तारने वाले होने से तीर्थ हैं । और जो जल स्थलमय हैं वे तीर्थ कभी नहीं हो सकते क्योंकि ‘जना यैस्तरन्ति तानि तीर्थानि’ मनुष्य जिन करके दुःखों से तरें उन का नाम तीर्थ है । जल स्थल तराने वाले नहीं किन्तु डुबाकर मारने वाले हैं । प्रत्युत नौका आदि का नाम तीर्थ हो सकता है क्योंकि उन से भी समुद्र आदि को तरते हैं । (११वां समुल्लास)
● ‘तीर्थ’ जिस से दुःखसागर से पार उतरें कि जो सत्यभाषण, विद्या, सत्संग, यमादि, योगाभ्यास, पुरुषार्थ, विद्यादानादि शुभ कर्म है उसी को तीर्थ समझता हूँ; इतर जलस्थलादि को नहीं । (स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश)
● ‘तीर्थ’ शब्द का अर्थ अन्यथा जान के अज्ञानियों ने जगत् के लूटने और अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए मिथ्याचार कर रक्खा है । सो ठीक नहीं, क्योंकि जो-जो सत्य तीर्थ हैं, वे सब नीचे लिखे जाते हैं – देखो ‘तीर्थ’ नाम उनका है कि जिनसे जीव दुःखरूप समुद्र को तरके सुख को प्राप्त हों । अर्थात् जो-जो वेदादिशास्त्र प्रतिपादित तीर्थ हैं, तथा जिन का आर्यों ने अनुष्ठान किया है, जो कि जीवों को दुःखों से छुड़ा के उनके सुखों के साधन हैं, उन्हीं को ‘तीर्थ’ कहते हैं । (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ग्रन्थ प्रामाण्याप्रामाण्य विषय)
मनुस्मृति ५/१०९ में मनु महाराज कहते हैं की जल से शरीर शुद्ध होता हैं, मन और आत्मा नहीं. मन तो सत्याचरण- सत्य मानने, सत्य बोलते सत्य ही करने से पवित्र होता हैं, जीवात्मा विद्या, योगाभ्यास और धर्माचरण से पवित्र होता हैं और बुद्धि पृथ्वी से लेकर परमेश्वर पर्यंत पदार्थों के ज्ञान से पवित्र होती हैं.
यजुर्वेद ४०/१४ में वेद भगवान कहते हैं अविद्या अर्थात कर्म उपासना से मृत्यु को तरके विद्या अर्थात यथार्थज्ञान से मनुष्य मोक्षलाभ करता हैं.
अब जो लोग गंगा स्नान अथवा गंगा गंगा बोलने से मुक्ति को मानते हैं उनसे से कई गंगा किनारे स्थित नगरों में रहते हैं जो अगर गंगा स्नान से, गंगा दर्शन से, गंगा के स्मरण से उनकी सभी पापों से निवृति हो जाती तो उनके किसी भी प्रकार का दुःख नहीं होना चाहिए था पर देखने में वे उसी प्रकार समान रूप से दुखी हैं जैसे और संसार के और लोग अपने पापकर्मों से दुखी हैं. इससे यह सिद्ध होता हैं की गंगा आदि के स्नान से किसी भी मनुष्य के पाप से बिना भोगे मुक्त नहीं हो सकते.यह निश्चित हैं की कर्म का फल भोगे बिना उससे कोई भी छुट नहीं सकता.
अनेक धार्मिक पुस्तकों में कर्म फल सिद्धांत के अनेक प्रमाण हैं जैसे
शुभ हो या अशुभ , किये हुए कर्म का फल भोगना ही पड़ता हैं.करोड़ों कल्प बीत जाने पर भी बिना भोगे उसका क्षय नहीं होता. (ब्रहमवैवर्त पुराण प्रकृति अ ३७)
जब ब्रह्मा का दिन समाप्त होने पर सृष्टि की प्रलय होती हैं, तो अभुक्त कर्म बीजरूप में बने रहते हैं, जब फिर नए सिरे से सृष्टी रचना होती हैं तो उसी कर्म बीज से अंकुर फूटने लगते हैं. पूर्व सृष्टि में जिस जिस प्राणी ने जो जो कर्म किये होंगे, फिर वे ही कर्म उसे बार बार प्राप्त होते रहेंगे (देवी भागवत पुराण)
जैसे बछड़ा हजारों गौयों के बीच अपनी माँ को ढूद लेता हैं, वैसे ही किया हुआ कर्म अपने करनेवाले को जा पकड़ता हैं. (महाभारत शांतिपर्व १५-१६)
मन से प्रकाशित ब्रहम ज्ञान रूप जल से जो मन के तीर्थ में स्नान करता हैं, तत्व दर्शियों का वही स्नान हैं. घर में या जंगल में जहाँ भी ज्ञानी लोग रहते हैं उसी का नाम नगर हैं, उसी को तीर्थ कहते हैं. हे भारत आत्मा नदी हैं, यही पवित्र तीर्थ हैं. इसमें सत्य का जल , धैर्य के किनारे तथा दया की लहरें हैं. इसमें स्नान करनेवाला पुण्यात्मा पवित्र हो जाता हैं. आत्मा पवित्र हैं, नित्य हैं एवं निर्लोभ हैं.
(महाभारत वन पर्व २००/९२ एवं उद्योग पर्व ४०/२१)
ब्रह्मा का ध्यान परम तीर्थ. इन्द्रिय का निग्रह तीर्थ हैं. मन का निग्रह तीर्थ हैं. भाव की शुद्धि परम तीर्थ हैं. ज्ञान रूप तालाब में ध्यान जल में जो मन के तीर्थ में स्नान करके रागद्वेष रूप मल को दूर करता हैं, वह परम गति को प्राप्त करता हैं. (गरुढ़ पूर्व अ ८१/ श्लोक २३-२४)
मन से प्रकाशित ब्रहम ज्ञान रूप जल से जो मन के तीर्थ में स्नान करता हैं, तत्व दर्शियों का वही स्नान हैं. घर में या जंगल में जहाँ भी ज्ञानी लोग रहते हैं उसी का नाम नगर हैं, उसी को तीर्थ कहते हैं. हे भारत आत्मा नदी हैं, यही पवित्र तीर्थ हैं. इसमें सत्य का जल , धैर्य के किनारे तथा दया की लहरें हैं. इसमें स्नान करनेवाला पुण्यात्मा पवित्र हो जाता हैं. आत्मा पवित्र हैं, नित्य हैं एवं निर्लोभ हैं.
(महाभारत वन पर्व २००/९२ एवं उद्योग पर्व ४०/२१)
यहाँ पाठकगन यह सोच रहे होगे की पुराणों में एक ही विषय में विरोधाभास क्यूँ हैं एक स्थान पर गंगा स्नान से मुक्ति का वर्णन हैं जबकि दुसरे स्थान पर केवल शुभ कर्म से मुक्ति हैं. इसका समाधान स्वामी दयानंद ने अत्यंत शोध और परिश्रम से निकाला था की उपनिषद्, दर्शन,ब्राह्मण ग्रन्थ, रामायण-महाभारत , पुराण आदि ग्रंथों में जो कुछ भी वेदानुकुल अर्थात वेद संगत हैं वह मानने योग्य हैं और जो भी वेद विपरीत हैं वह न मानने योग्य हैं.
इसलिए वेदों में वर्णित कर्म फल के अटूट सिद्धांत को मानते हुए पुराणों के उपरलिखित प्रमाण जिसमें केवल पुण्य कर्म से सुख प्राप्ति का होना बताया गया हैं सत्य हैं.
तीर्थ के नाम पर स्नान आदि से पुण्य की प्राप्ति एक अन्धविश्वास मात्र हैं और मानव मात्र को सत्य मार्ग से भ्रमित कर उसे अंधकार में लेकर जाने वाला हैं.
— डॉ विवेक आर्य
अछे काम करना ,सच बोलना ,किसी का नुक्सान नहीं करना ,चोरी नहीं करना ,झूठ नहीं बोलना ,बजुर्गों की जीते जी सेवा करना ही धर्म है ,यह सबी कर्म काण्ड परोह्तों ने अपनी तोरी फुल्के को बरकरार रखने के लिए ही लोगों को दिलों में इंजेक्ट किये हुए हैं . इसी तरह ज्योतिष विद्या भी वहमी लोगों का आर्थिक शोषण करने के लिए ही इस्तेमाल हो रहा है .किसी ज्योतिषी ने पठानकोट हमले के बारे में बताया होता तो दोषी पकडे जाते और इतने जवान शहीद नहीं होते .आप के लेख हमेशा अछे होते हैं .
प्रिय विवेक भाई जी, अति सुंदर व सार्थक आलेख के लिए आभार.