देखा है जितनी बार
देखा है जितनी बार तुम्हे,
हर बार नए से लगते हो,
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
हर अंदाज़ लगे निखरा निखरा,
खुशबू की तरह महका महका,
फूल सा खिल जाता है हर सू,
जब भी तुम हँसते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
आँखों में चमक जीवन की,
सांसो में सुगंध मधुवन की,
बहार आ जाये जैसे खिज़ा में,
जब भी तुम मिलते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
सूरज का तेज़ है माथे पे,
चन्दा की शीतलता बातों में,
सरसिंगार झरता है होठों से,
जब भी तुम कुछ कहते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
नैन हैं जैसे मन के दर्पण,
जी चाहे सब कर दूँ अर्पण,
जग से न्यारा रूप तुम्हारा,
तुम प्रेमदूत से दिखते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
कैसे बाँधू तुम्हे शब्दों में,
कैसे व्यक्त करूँ छंदों में,
जीने के लिए एक प्राण हो तुम,
धड़कन की तरह दिल में रहते हो।
छलक-छलक जाए आँखों से,
प्रेम पात्र भरे से लगते हो।
-सुमन शर्मा
सुन्दर कविता!