सामाजिक

महिला और इंटरनेट

सोशल नेटवर्किंग महिलाओं को बाहरी दुनिया से जोड़ने का एक बहुत बड़ा जरिया है। चारदीवारी में कैद महिलाओं में कूपमंडूकता की भावना पनप चुकी थी। लेकिन ये नयी टेक्नोलॉजी चारदीवारी में ऐसी खिड़की बनी जिससे झाँककर महिलाएं पूरी दुनिया को देख सकती है। फेसबुक, ट्वीटर और ह्वाटसप तो महिलाओं के लिये वरदान साबित हुआ। इससे माध्यम से बहुत सी महिलाएं के जीवन की निरसता दूर हुई है। उसने अपनी एक खास पहचान बनायी है।
इस काल्पनिक दुनिया ने मुझे भी एक साहित्यकार के रुप में पहचान दिया है। मुझे लिखने का शौक बचपन से ही है, लेकिन मेरी रचनाएँ डायरी तक ही सिमटी थी। फेसबुक पर मुझे बहुत से साहित्यकार मित्र और गुरु मिले जिन्होंने मेरी रचनाओं की प्रशंसा की, मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया तथा सही मार्गदर्शन दिये। यहीं पर मेरी पहचान कुछ संपादकों से भी हुई और मेरी कविताएँ प्रकाशित भी हुई।
इंटरनेट ने मुझे अपनी रचनाओं, बातों और विचारों को दुनिया के सामने रखने का तथा विद्वानों और गुणीजनों की रचनाओं और उनकी विचारों को पढ़ने का मौका दिया। किसी भी क्षेत्र में जानकारी प्राप्त करनी हो तो हम इंटरनेट की सहायता से तुरंत प्राप्त कर लेते हैं। इंटरनेट ने हमें इतना दिया कुछ दिया है जिसे हम शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते हैं। इंटरनेट मनुष्य का दिया हुआ सबसे अच्छा उपहार है। इंटरनेट के क्षेत्र में योगदान देने वाले सभी विद्वानों को हम सत सत नमन करते हैं।

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।