धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदों में स्तुति और सम्पूर्ण विज्ञान पर प्रो. बालकृष्ण के उत्तम विचार

ओ३म्

 

प्रो. बालकृष्ण आर्यसमाज के एक प्रमुख ऋ़षिभक्त वैदिक विद्वान हुए हैं। आपका जन्म अविभाजित भारत के पश्चिमी पंजाब में हुआ था। आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने आपके जीवन विषयक कुछ जानकारी दी है जिसके अनुसार डा. बालकृष्ण जी ने कोल्हापुर में शिवाजी के नाम पर विद्यापीठ की स्थापना का स्वप्न देखा था। डा. बालकृष्ण प्रथम भारतीय हैं जिन्होंने श्विाजी पर पी.एच.डी किया। शिवाजी पर शोध करते हुए वे पुर्तगाल भी गये थे। वहां से शिवाजी के बारे में बहुत ठोस सामग्री लाए। यह उनकी विलक्षण ऊहा का फल था। शिवाजी के काल में पुर्तगाली भारत के तट पर कुछ रहने लग गये थे। वे मुगलों, बीजापुरियों से शिवाजी के संघर्ष युद्धों के साक्षी थे। बालकृष्ण जी ने पुर्तगाल जाकर ऐसे पुराने पुर्तगालियों के परिवारों को खोजा। उन्होंने तब अपने घरों को जो पत्र आदि लिखे, उनकी खोज की। उन पत्रों में शिवाजी की शूरता, वीरता का बखान करते हुए उनकी यूरोप के पुराने असाधारण सेनापतियों से तुलना की गई थी।

 

प्रा. जिज्ञासु जी ने प्रो. बालकृष्ण जी के बारे में यह भी लिखा है कि सन् 1933 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में आर्यसमाज की ओर से उन्होंने भाग लिया था। तब आपका और पं. अयोध्याप्रसाद जी का यहां एक एक व्याख्यान भी हुआ था। सभा के आरम्भ होने पर प्रतिदिन पहले ये दोनों विद्वान वेदमन्त्रों से ईश्वरप्रार्थना करते थे। इनके पश्चात पादरी मौलवी अपने धर्मग्रन्थों से प्रार्थना करते थे। इन दोनों के कारण उस समय अमेरिका में आर्यसमाज की अच्छी चर्चा हुई।

 

प्रो. बालकृष्ण जी के विषय में यह भी जानने योग्य तथ्य हैं कि वह कई विषयों के विद्वान तथा कई भाषाओं के सिद्धहस्त लेखक थे। आपने उर्दू, हिन्दी तथा अंग्रेजी में लिखा। धर्म, दर्शन, इतिहास, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र पर लिखा। आप मराठी, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा उर्दू भाषा में पूर अधिकार में बोलते थे।

 

इस लेख में हम प्रो. बालकृष्ण जी की पुस्तक ईश्वर ज्ञान: वेद” से उनकी वेदस्तुति तथा वेदों में सम्पूर्ण विज्ञान शीर्षक से लिखे विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं। वेदस्तुति के अन्तर्गत आपने लिखा है कि यदि वेदों का सच्चा महत्व न होता तो मनु भगवान वेदों की स्तुति न करते। पितरों, देवों और मनुष्यों का सनातन चक्षु वेद है। यह निश्चय जानों कि वेद शास्त्र का बनाना और पूर्णतया समझना मानवशक्ति से बाहर है। अन्यान्य जो शास्त्र बनते और नाश हो जाते हैं वे निष्फल और झूठे हैं, क्योंकि वे अर्वाचीन हैं। चार वर्णों, तीन लोकों, चार आश्रमों, भूत, भविष्यत्, वत्र्तमानसबका पृथक पृथकृ ज्ञान वेदों के द्वारा होता है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध वेदों द्वारा जाने जा सकते हैं। नित्य वेदशास्त्र को ही मैं परमोत्तम मानता हूं, क्योंकि यह सर्वजन्तुओं को सुख प्राप्ति का साधन है।’ (मनुस्मृति 12.94.97)

 

यदि हमारे ऋषि-मुनि वेदों को अद्यकालीन यूरोपीयनों की भांति बालकों की बिल-बिलाहट समझते तो ऐसी अपूर्व महिमा के वाचक शब्द क्यों लिखते?

 

अब इसी विषय में श्रीमान् सत्यव्रत सामश्रमी की आंगल भाषा में अमूल्य साक्षी का हिन्दी रूपान्तर लीजिए, उसके आवश्यक भाग ये हैं–

 

जिस समय तक फोटोग्राफी, फोनोग्राफी, गैस, प्रकाश, तार, टेलिफोन, रेल और विमान इस देश में न लाये गये थे तो इन पदार्थों के वर्णन करनेवाले मन्त्रों को कोई आदमी कैसे समझ सकता था? यदि किसी समय वैज्ञानिक उन्नति के ये चिन्ह देश से नष्ट हो जाएं तो क्या कुछ काल पश्चात इन शब्दों के अर्थ कोई आदमी समझ सकेगा? उस समय भूगर्भ विद्या, ज्योतिष तथा रयासन का नाम अधिदैविक विद्या था और शरीर विद्या, मनोविज्ञान, धर्मशास्त्र को अध्यात्मविद्या कहते थे। वेदों के कुछ भागों के अध्ययन से यह परिणाम निकलता है कि (प्राचीन वैदिक काल में) इस देश में वैज्ञानिक खोज इस मात्रा तक की गई कि जो आज तक यूरोप के उन्नत देशों और वैज्ञानिक आविष्कारों के स्थिर स्रोत अमेरिका (जापान, जर्मनी फ्रांस आदि) ने भी नहीं की। यह मर्म है जिसके कारण वैज्ञानिक अर्थ रखनेवाले मन्त्रों को हमारे लिए समझना असम्भव है। सत्य तो यह है कि वेदों का ठीक भाष्य वही कर सकता है जो संसार की सब विद्याओं और कलाओं को भली प्रकार जानता हो। प्रो. बालकृष्ण जी के ये विचार बार बार पढ़ने योग्य है। इनमें जिस रहस्य का उद्घाटन किया गया है उससे वेदों का महत्व संसार के सभी मत-पन्थ व कुछ विज्ञान के ग्रन्थों से कहीं अधिक हो जाता है।

 

अब हम विद्वान लेखक डा. बालकृष्ण जी के वेदों में सम्पूर्ण विज्ञान’ शीर्षक से प्रस्तुत विचारों को दे रहे हैं। वह लिखते हैं कि अन्त में हम श्री अरविन्द घोष की सम्मति प्रगट करते हैं। उन्होंने वेदों की व्याख्या में ही अपना सम्पूर्ण समय दिया हुआ है और निस्सन्देह वह अद्वितीय विद्वान है, अतः उनकी सम्मति बहुमूल्य है-‘वेदों में सृष्टि विद्या के तत्वों का भी कुछ कम आविर्भाव नहीं है। ऋषि सदा लोकों की, उन दृढ़ नियमों की जो उन लोकों को नियन्त्रित करते हैं और सृष्टि में परमात्मा की क्रियाओं की चर्चा करते हैं, परन्तु दयानन्द इससे भी आगे जाते हैं, वह कहते हैं कि आधुनिक पदार्थ विज्ञान की सत्यताएं भी वैदिक मन्त्रों में प्रकटित होती हैं। यही एक बात भौतिक सिद्धान्तों (विज्ञान के सिद्धान्तों) की है जिसके विषय में हमें कुछ सन्देह करने के कारण मिल सकते हैं। मैं इस विषय में किसी निश्चित सम्मति देने की अपनी अयोग्यता को स्वीकार करता हूं, परन्तु इतना अवश्य है कि इस समय प्राचीन जगत् के सम्बन्ध में जो हमारे ज्ञान की प्रवृत्ति है उससे इस विचार की बढ़ती हुई पुष्टि हो रही है। प्राचीन सभ्यताओं के पास विज्ञान के रहस्य अवश्य थे, जिनमें से कुछ का तो आधुनिक ज्ञान ने फिर से उद्घाटन किया है, उनका विस्तार किया है और उन्हें अधिक सम्पन्न और शुद्ध बना दिया है, परन्तु कुछ रहस्य ऐसे हैं जिनका अब भी उद्घाटन नहीं हुआ। इसलिए दयानन्द के इस विचार में कि वेदों में विज्ञान के तत्व और धर्म की सत्यताएं हैं, कोई बात उच्छृड़ख्लता (अतिश्योक्ति) की नहीं है। मैं अपना विश्वास भी इसमें जोडूंगा कि वेदों में एक दूसरे विज्ञान की सत्यताएं हैं जो आधुनिक जगत् के पास नहीं हैं, और यदि ऐसा है तो दयानन्द ने वैदिक ज्ञान की गम्भीरता और विस्तार का अनुमान कम किया है, अधिक नहीं किया।’

 

हमने वेदों में स्तुति और विज्ञान विषयक प्रो. बालकृष्ण जी के विचारों को उपयोगी जानकर इस लेख में प्रस्तुत किया है। प्रो. बालकृष्ण जी की पुस्तक ईश्वरीय ज्ञान: वेद’ आर्य विद्वान डा. वेदपाल जी के सम्पादन में आर्य साहित्य के सुप्रसिद्ध प्रकाशक श्री अजय आर्य जी द्वारा अपने विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली’ प्रकाशन प्रतिष्ठान से प्रकाशित हुई है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक ज्ञानवर्धक सामग्री से भरी हुई है। वेदों में रूचि रखने वाले पाठकों को इसे पढ़ना चाहिये। इस लेख के लिए हम प्रो. बालकृष्ण जी के तो, उनकी मृत्यु के बाद भी, आभारी हैं ही, इसके साथ हम प्रकाशक व सम्पादक सहित प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी का भी धन्यवाद सहित आभार व्यक्त करते हैं। हमें इस बात का दुःख है कि हमें प्रो. बालकृष्ण जी का चित्र व उनके जन्म व मृत्यु की तिथियां प्राप्त न हो सकीं। यदि किसी विद्वान को ज्ञात हों वा उपलब्ध हो तो हमें कृपया इमेल द्वारा उपलब्ध कराने की कृपा करें।

 

मनमोहन कुमार आर्य

4 thoughts on “वेदों में स्तुति और सम्पूर्ण विज्ञान पर प्रो. बालकृष्ण के उत्तम विचार

  • मनमोहन भाई ,लेख अच्छा लगा .

    • मनमोहन कुमार आर्य

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। डॉ। बालकृष्ण जी के समान प्रतिभा वाले लोग संसार में परमात्मा बहुत कम पैदा करता है। इन कार्यों पर एक विस्तृत लेख कुछ दिन बाद अवकास होने पर प्रस्तुत करने का प्रयास है।

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, प्रो. बालकृष्ण कुछ लोग विद्वान भी होते हैं और जिज्ञासु भी. अति सुंदर व सटीक आलेख के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      सादर नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद। ।

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