कविता : खजाना
अभी भी भरा है
मेरे लफ्ज़ो का
खज़ाना
कलम का मेरी
अभी भी है
आना जाना
पर रूक सा गया है
ये गुंफ्तगू का
तराना
मंजू
शायद उब सा गया है
ये ज़माना
क्यों न बिखेर दूँ
ये सारे लफ्ज़
रेगिस्तान में
शायद खिले
इक फूल
आशियाने में
मेरे लफ्ज़ो का
खज़ाना
कलम का मेरी
अभी भी है
आना जाना
पर रूक सा गया है
ये गुंफ्तगू का
तराना
मंजू
शायद उब सा गया है
ये ज़माना
क्यों न बिखेर दूँ
ये सारे लफ्ज़
रेगिस्तान में
शायद खिले
इक फूल
आशियाने में
— मंजुला रिशी
अत्ती सुन्दर शब्द .