कविता

कविता : ज़िंदगी 

एक उड़ते पंछी की तरहा तन्हा
पानी की लहरों जैसी हलचल वाली
बहती हवा जैसी मस्त
तूफानो जैसी हिम्मत वाली
खाई में गिरते पत्थरों जैसी
मगर कभी कभी ये ज़िंदगी
मज़बूत हो कर भी बिखर जाती है
तूफानी हो कर भी थम जाती है
लहरों जैसी हो कर भी रूक जाती है
मगर ये मत भूलना
ये ऐसी डोर नही जो
बुराई से कट जाये
न ऐसी लहर है जो
साहिल से डर जाये
न ऐसी हिम्मत है
जो ठंडी नज़रों से टूट जाये
ये हिम्मत अगर साथ हो
सारी ज़िदगी पंख लहरा कर उड़ जाती है
अक्षित शर्मा
कोबे, जापान