टूट कर बिखर गया मेरा शहर ”हरसूद”
ये कहानी हमारे शहर हरसूद की हैं बात सन् 2004 की हैं यह वक्त हमारे शहर हरसूद का इंदिरा सागर बाँध का वॉटर लेवल बड़ने से डूब में आने का था। शासन द्वारा 30 जून 2004 हरसूद की डेड लाइन निर्धारित की गई थी। इस तारीख तक हरसूद को पूरी तरह खाली कराना था। प्रशासन द्वारा हरसूद को खाली कराने में सैन्य बल का भी प्रयोग किया गया। एक जीता जागता शहर हरसूदअब जल समाधि लेने को तैयार था। जिसका नाम ही हर सूद था अब उसकी सुध लेने वाला कोई नही था। सब अपना घर बार तोड़कर अपना सामान बांधकर मुआवजा राशि लेकर किसी नए शहर में बसने के लिए जा रहे थे। चारो और मलवे का ढेर था, टूटते घर, ट्रको से लोग अपने घर गृहस्थी का सामान ढोकर हरसूद से ले जा रहे थे। लोगो के दिलो में अपनी जन्म भूमि से, अपनी कर्म भूमि से दूर जाने का जो दुःख उनकी आँखों में था उसे बयान नहीं किया जा सकता। किस तरह अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने शहर को छोड़कर जाना हमारी मजबूरी रही थी। उस वक्त का जो नजारा था वह दिलो को दहला देने वाला था। ऐसा कभी किसी शहर के साथ नहीं हुआ होगा। किस तरह हरसूद सब कुछ हँसते-हँसते सह गया। किसी से कुछ नही कहा। हमारे शहर में एक अलग ही बात थी, वहाँ के लोग सज्जन व मिलनसार थे। एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव रखते थे। किसी को नही पता था कौन कहाँ जाने वाला हैं और फिर जिन्दगी में कभी एक दूसरे से मिलेंगे भी या नहीं। बस सभी हरसूद की यादे अपने दिलो में बसाकर उससे अंतिम विदाई ले रहे थे। हम भी हरसूद से दूर जा रहे थे वो मुस्कुराते हुए हमसे बाय कर रहा था।
व्यापारी वर्ग भी परेशान था किसी नई जगह पर जाकर नये सिरे से अपना व्यवसाय स्थापित करना उनके लिये चिंता का विषय था। हरसूद से 17 किलोमीटर की दूरी पर हरसूद को विस्थापित कर पुनर्वास स्थल नया हरसूद के नाम से बसाया जा रहा था। वहाँ हरसूद के निवासी को उनकी जमीन के बदले पट्टे के प्लाट वितरित किये जा रहे थे। जहाँ वह अपना मकान बनाकर रह सके। मुआवजे की जो राशि मिली थी वह इतनी नहीं थी कि हमारी संपत्ति की भरपाई कर सके। हरसूद डूबने से कई लोगो के दिन बदल गये तो कई लोग बेघर हो गये। इस दौरान लोगो को कई मुशिबतो का सामना करना पड़ा। यह संकट का समय था जो हर एक हरसूद निवासी पर आया था। उस समय हरसूद का दृश्य ह्रदय विदारक था। बड़ी-बड़ी इमारते गिराई जा रही थी। मजदूर इमारतों पर चढकर हथौड़ों से दीवारो को फोड़ रहे थे। चारो तरफ हथौड़ों के चलने की आवाज, चलती गेती, फावड़े, सब्बल और पल-पल गिरती इमारते और एक एक घर बारी बारी बली पर चढ़ रहा था। कुछ लोग अपने घर को नीलाम कर पैसा लेकर जा रहे थे तो कोई मजदूरो से घर तुडवा रहे थे व मकान का मटेरियल ले जा रहे थे। कुछ लोग अपने घरो का मटेरियल व पुराना सामान विक्रय कर रहे थे।आसपास के क्षेत्रो से लोग हरसूद के आखिरी दर्शन के लिये आ रहे थे। कुछ लोगो ने अन्य जगह मकान खरीद लिए थे तो कईयो को कहाँ जाना हैं पता ही नहीं था। कुछ लोग नए हरसूद की शरण में गए जो हरसूद की तरह बन्ने का दावा कर रहा था पर उसके जैसा नही बन पाया था। नये हरसूद को कई सेक्टरों में बाँटा गया था। कुछ लोगों ने वहाँ मकान बना लिये तो कई लोगो के प्लाट खाली पड़े थे। सड़को पर स्ट्रीट लाइट नही थी। पानी की वहाँ पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। गर्मी का समय था तपती धूप और एक तरफ सरकार के खोखले दावे। लोगों को टीन शेड बना कर वहाँ शिफ्ट किया जा रहा था और हरसूद को खाली कराया जा रहा था। भीषण गर्मी में टीन शेडो में रहना गरीब वर्ग के लोगो के लिए काफी मुश्किल रहा पर बेचारे जाते भी कहाँ। उनका हाल पूछने वाला कोई नही हैं। जो सबकी सुध लेता था उस हरसूद पर भी संकट के बादल मंडरा रहे थे कब बाँध का पानी आ जाये और वह जलमग्न हो जाये कोई नहीं जानता था। हरसूद के डूब में आने से कई संयुक्त परिवारो के बँटबारे हो गए कोई किसी की दखल अन्दाजी नही चाहता था। सब अपना जीवन अपने अनुसार जीना चाहते थे। संपत्ति में बँटबारा चाहते थे। अपना हक चाहते थे। कई संयुक्त परिवार अलग हो गए उनमे धन के कारण आपसी मन मुटाव हो गए। कई अपने अपनों के दुश्मन बन गए। हरसूद के डूब जाने से कई परिवार बिखर गए जो फिर कभी एक नही हो पाये। हरसूद के डूब में आने के दौरान कई महान आत्माओ ने अपने प्राण त्याग दिए वो हमेशा हमेशा के लिए अपने शहर के दुःख में उसके साथी हो गए। कई बुजुर्गो के मित्र गण साथी बिछड़ गए बच्चों के मित्र भी ना जाने कहाँ गए जो एक दूसरे से अब न जाने कब मिलेंगे और मिलकर एक दूसरे को पहचानेगे भी या नहीं। लोगो की संपत्ति के बदले जो मुआवजा राशि उन्हें मिली वह रकम इतनी नहीं थी की किसी अन्यत्र जगह उतना बड़ा मकान या ज़मीन जायदाद खरीदी जा सके। पर राजनेता की मिली भगत के आगे आम जनता क्या कर सकती थी। देखते ही देखते हरसूद पूरी तरह खाली हो चुका था। लोग अपना सामान लेकर रवाना हो रहे थे। चारो तरफ पड़ा मलवा और मिट्टियों के ढेर में तब्दील हो गई इमारते लोगो के आशियाने ढेर हो चुके थे। चंद इमारते जो अभी भी खड़ी थी हरसूद की शोभा बड़ा रही थी। वह मंजर देखते ही नहीं बनता था। लोग अपने दुखड़े रो रहे थे। किसी को पर्याप्त मुआवजा नही मिला तो कोई अपना मकान खाली नही कर रहा था। चारो और कौए उड़ रहे थे हरसूद पर खतरा मंडरा रहा था। ये सब इतनी जल्दी हो जायेगा किसी ने सोचा भी नहीं था। हरसूद में प्राचीन सरस्वती कुण्ड शिवालय था वहाँ साक्षात् देवाधिदेव महादेव, माता पार्वती, गणेश जी, नंदीगण विराजित थे। मंदिर में प्राचीन कलाकृतिया देखी जा सकती थी। मंदिर प्रांगण में हनुमान जी का मंदिर था। मंदिर में एक प्राचीन कुण्ड था जिसमे गौ मुख से जल बहता था। कुण्ड में माँ लक्ष्मी और सरस्वती की प्राचीन मूर्तियाँ थी। यह साधु संतो की तपोस्थली थी।आस पास आम के वृक्ष और मंदिर के सामने बहता नाला मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य बड़ा ही मनोरम था। उस प्राचीन मंदिर को भी तोडा जा रहा था यह मंदिर नये हरसूद में जा रहा था देखते ही देखते वृक्ष काट दिए गए। उस जगह को इस तरह से समतल कर दिया गया की वहाँ पर प्राचीन शिवालय था, कभी उसकी कल्पना मात्र ही की जा सकती हैं। इसी तरह हरसूद के सभी मंदिर नए हरसूद में बनाये गए सिर्फ खेड़ापति हनुमान मंदिर ही एक ऐसा मंदिर हैं जहाँ आज भी खेड़ापति हनुमान जी पुराने हरसूद में ही निवास कर रहे हैं उन्हें अपने स्थान से हटाने के भरसक प्रयास किये गए पर नाकामी ही हाथ लगी वह अपनी जगह से हिले तक नहीं। नए हरसूद में भी खेड़ापति हनुमान मंदिर बनाया गया हैं वहाँ पर जो हनुमान मूर्ति स्थापित है उसे पुराने हरसूद की हनुमान मूर्ति से स्पर्श कराकर स्थापना की गयी हैं ये भी उन्ही की तरह परम प्रतापी और पराक्रमी हनुमान हैं। और पुराने हरसूद के उस मंदिर को वहाँ वैसा ही छोड़ दिया गया जहा आज भी खेड़ा पति हनुमान खेड़े पर निवास कर रहे हैं। आज हरसूद को डूबे 11 वर्ष बीत चुके हैं वह पूरी तरह वीरान हो चुका हैं उजड़ गया हैं मिट्टी के ढेर में तब्दील हो गया हैं खंडहर बन गया हैं वहाँ मस्जिद की मीनारे और मंदिरो के गुम्बद आज भी देखे जा सकते हैं बारिश में वहाँ पानी भरा रहता हैं गर्मी के दिनों में रास्ता खुल जाता हैं। तब हम हरसूद में अपनी पुरानी यादे ताजा करने जा सकते हैं। वो आज भी वैसा ही हैं वहाँ की हवा में अपनापन आज भी महसूस होता हैं आज भी हरसूद हमें याद हैं वहाँ के चलचित्र आज भी नजर आते हैं। हरसूद आज भी अपने लोगो को अपने पास बुला ही लेता हैं ऐसा है हमारा हरसूद जिसे हम हरसूद निवासी कभी भी भूला नहीं सकते।
लेखक- शिवेश अग्रवाल नन्हाकवि, खिरकिया (म.प्र.)