लघुकथा : रिश्तों का मान
“बेटी हर घर में ऐसी बातें होती रहती है ”
“पर माँ यही छोटी -छोटी बातें बडा रूप ले लेती है ” फोन पर दामिनी अपनी मां से बोली
“तो बेटी तुम ही अपनी सास से बात करो, बातचीत से हल निकलता है ”
“नही माँ मे उनको कुछ बोलू तो बो मुझे ही डांटने लगती है आप ही बोलती है न कि बडो को जबाब नहीं देते….. आप ही बात करो न ”
“ठीक है मे बात करती हूं ”
ट्रिन ट्रिन…” हैलो ”
“हैलो… कौन ”
“मे दामिनी की मां ”
दामिनी की मां ज्यादा कुछ कहती इससे पहले ही दामिनी की सास ने बीच में ये बोलकर कि ‘ये हमारे घर का मामला है हम सुलझा लेगे’ कहकर बात दबा दी।
दामिनी समझ चुकी थी बात ऐसे नही बनेगी। उसने अपना व्यवहार बदल लिया, उसके बदले व्यवहार से घर का माहौल खराब होता जा रहा था फिर एक दिन…
“हैलो….. कौन ”
“में दामिनी की सास ”
उसने दामिनी के बदले व्यवहार के बारे में जब बताया तो दामिनी की मां बोली “मैं क्या कर सकती हूं…. ये आपके घर का मामला… ऐसा मैं नहीं आप ही कह रही थी न ”
सास ने कुछ कहे बिना ही रिसीवर रख दिया। सामने दामिनी मुस्करा रही थी, अपने बदले व्यवहार का असर दिखाई दे रहा था सास पर, इससे पहले कि कोई कुछ कहता दामिनी सास के गले लग गई।।।।।
— किन्तु रजनी विलगैंया
प्रिय सखी रजनी जी, अति सुंदर व व्यावहारिक लघु कथा के लिए आभार.