“फोन की घंटी भी अफीम सी होती है”
अजीब सी होती है करीब सी होती है
कभी तो बहुत खुशनशीब सी होती है
रूठकर बड़ी तकलीफ दे जाती सखे
फोन की घंटी भी अफीम सी होती है॥
सुबह घनघना उठी ज़ोर से विस्तर पर
सिरहाने ही रखा था उसको कनस्तर
झनझना कर रख दिया पूरे माहौल को
सखियों ने बुलाया है मैडम को सैर पर॥
जाओ जी रोज रोज ये कैसा बखेड़ा है
सोने दो चैन से क्यों नींद को उखेड़ा है
तनिक तो रहम करों रातों को जगाकर
बिन थके चलना है पूरे दिन का बेड़ा है॥
फिर से रड़क गई यह किसकी धुन है
खोलो दरवाजा शायद दूध वाला चुनमुन है
इनबाक्स में देखो नया मैसेज तुम्हारा
पास हुआ मुन्ना छपे नए नए गुन हैं॥
अच्छ हुआ तुम आ गई सुबह को घुमाकर
सखियों को ताजी ताजी हवा खिलाकर
मैके से फोन तुम्हारी मम्मी का आया था
तनिक मनबतिया बता दो उनको बहलाकर॥
वाट्सएप फ़ेसबुक फैशन की बतिया
जानती हूँ भोलेनाथ टच करते सवतिया
चलों छोड़ दो मुझको पापा घर पूजा है
कुछ दिन शकून से फोनिया लेना रतिया॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी