गीतिका/ग़ज़ल

** ख़ता **

बूँद यारा शराब हो जाये
गर नज़र से जनाब हो जाये

गर फरिश्तों का हो करम मुझ पर
हर ख़ता भी सबाब हो जाये

क्यों रहे डर हमें सवालों का
मन जो हाज़िर जवाब हो जाये

लब नुमाइश अगरचे कर दें तो
लफ़्ज़ हर बेनक़ाब हो जाये

रात “मुस्कान”हो गई देखो
इतना सो लो कि ख़ाब हो जाये

निर्मला “मुस्कान”

निर्मला 'मुस्कान'

निर्मला बरवड़"मुस्कान" D/O श्री सुभाष चंद्र ,पिपराली रोड,सीकर (राजस्थान)

One thought on “** ख़ता **

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर

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