कुण्डली/छंद कुण्डलिया छंद *महातम मिश्र 30/06/201601/07/2016 मन मयूर चंचल हुआ, ढ़फली आई हाथ प्रेम प्रिया धुन रागिनी, नाचे गाए साथ नाचे गाए साथ, अलौकिक छवि सुंदरता पिया मिलन की साध, ललक पाई आतुरता कह गौतम कविराय, कलाकारी है कर धन मंशा दे चितराय, सुरत बसि जाए तन मन॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी