ब्याहता एक ऐसी भी है
उन्मन मन, अर्थहीन जीवन,
असाध्य पीड़ा हृदयविदारक,
विषयासक्त के प्रति समर्पित,
अबला एक नारी है।
मनस्ताप अवर्णीय,
आत्मकथा अकथनीय,
दिनचर्या सामान्य रखने वाली,
अविकल्पित एक कहानी है।
अनभिज्ञ नहीं ज्ञाता हूँ,
मैँ बेबस और लाचार,
मातृत्व की बेड़ी पैरों में,
आत्मघात कल्पना से परे है।
असह्य व्यवहार प्राणप्रिय का
लोचन अश्रुमय है
व्यथा बंधक अनुगामी सी
ब्याहता एक ऐसी भी है
ब्याहता एक ऐसी भी है।
— सुचि संदीप, तिनसुकिया
(काव्य संग्रह दर्पण में प्रकाशित)
सूचि जी नारी की वेदना का बहुत ही मार्मिक चित्रण। अच्छी रचना के लिए साधुवाद।
मार्मिक लेखन
धन्यवाद बासु भैया और विभाजी।
धन्यवाद बासु भैया और विभाजी।