~बोल ~
तुम्हारें श्री मुख से
दो शब्द
निकले कि
मैंने कैद कर लिया
अपने हृदय उपवन में !!
अब हर रोज
दिल से निकाल
दिमाग तक लाऊँगी
फिर कंठ तक
फिर मुस्कराऊँगी
चेहरे पर
एक अलग सी
चमक बिखर जाएँगी
बार बार यही
दुहराती रहूंगी
क्योकि
अच्छी यादों को
बार-बार खाद-पानी
चाहिए ही होता है!!
और तब जाके
एक दिन
तैर जायेंगी
सरसराहट
बेकाबू हो
उड़ चलेगा
पूरा शरीर ही
हल्का-फुल्का हो
आकाश के उस पार !!
फिर तुम्हारें ही
महज दो बोल
भारी कर जायेंगे
मन को
और तत्क्षण
ला पटकेंगे मुझे
धरती पर !!
क्यों !
होता हैं न ऐसा
कभी कभी !!!