रवि शास्त्री की असहिष्णुता
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व डाइरेक्टर और क्रिकेटर रवि शास्त्री अपने खेल के लिए कम और सुनील गावस्कर के चमचे के रूप में अधिक जाने जाते हैं। लगभग १८ महीनों तक भारतीय टीम का डाइरेक्टर रहने के बाद उन्होंने मान लिया था कि टीम के कोच के रूप में उन्हीं का चयन किया जाएगा। इसीलिए साक्षात्कार के दिन थाइलैन्ड में छुट्टियाँ मनाना मुनासिब समझा और वीडियो कन्फ़्रेन्सिंग के माध्यम से इन्टरव्यू दिया। अनुभवी अनिल कुंबले इस दौड़ में बाजी मार ले गए। इसके बाद शास्त्री केजरीवाल की भूमिका में उतर आए। टीम का कोच न बन पाने के लिए उन्होंने सौरभ गांगुली को जिम्मेदार ठहराया। कोच के लिए चयन समिति में अगर सुनील गावस्कर रहते, तो निश्चित रूप से शास्त्री ही कोच होते, लेकिन शास्त्री के दुर्भाग्य से चयन समिति में सचिन तेंदुलकर, वी.वी.एस. लक्ष्मण और सौरभ गांगुली जैसे उच्च निष्ठा के क्रिकेटर थे जिनका योगदान भारतीय क्रिकेट के विकास में अतुलनीय रहा है। रवि शास्त्री जिस सौरभ गांगुली के विरोध में अनाप-शनाप बोल रहे हैं, उनका योगदान भारत की टीम के नव निर्माण में अतुलनीय रहा है। दुर्भाग्य से वे विदेशी कोच ग्रेग चैपेल के शिकार बन गए, नहीं तो भारतीय टीम के कप्तान के रूप में उनकी सेवायें कुछ वर्ष और प्राप्त होती। जो काम ग्रेग ने गांगुली के साथ किया, वही काम शास्त्री ने धोनी के साथ किया। पिछले इंगलैंड के दौरे में शास्त्री ने टीम को दो फाड़ कर दिया था। विराट कोहली को कप्तान बनने की जल्दी थी। इसका फायदा उठाते हुए शास्त्री अपनी गोटी बैठाने में कामयाब हो गए। टीम बिखर गई और भारी मन से धोनी को टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी से सिरिज के बीच में ही त्यागपत्र देना पड़ा।
शास्त्री शुरु से ही एक स्वार्थी खिलाड़ी रहे हैं। धीमी गति से बल्लेबाजी करने के कारण कई बार उन्होंने भारतीय टीम को हरवाने में मुख्य भूमिका निभाई है। शास्त्री सिर्फ अपने रिकार्ड के लिए खेलते थे और उन्हें सुनील गावास्कर का पूर्ण संरक्षण प्राप्त था। भारत का कौन क्रिकेट प्रेमी चेन्नई में संपन्न हुए भारत और आस्ट्रेलिया के बीच दूसरे टेस्ट मैच को भूल सकता है। दिनांक २२-९-१९८६ को मैच का अखिरी दिन था। मैच में भारत जीत की ओर बढ़ रहा था। उसे अन्तिम ओवर में चार रन की जरूरत थी और क्रीज पर आखिरी जोड़ी के रूप में रवि शास्त्री और मनिन्दर सिंह खड़े थे। प्रथम श्रेणी के मैच में तिलकराज के एक ओवर में छः छक्के लगाने वाले शास्त्री के लिए मैथ्यू जैसे बोलर के खिलाफ सिर्फ चार रन बनाना कहीं से भी मुश्किल नहीं था। स्ट्राइक पर शास्त्री ही थे। मैथ्यू की पहली गेंद पर कोई रन नहीं बना। दूसरी गेंद पर शास्त्री ने दो रन लिए। अब जीत के लिए सिर्फ दो रनों की दरकार थी। मैं सांस रोककर टीवी के सामने बैठा था। तीसरी गेंद पर शास्त्री ने एक रन लेकर स्ट्राइक मनिन्दर को थमा दी। वे आउट होने से भयभीत थे, भले ही टीम इंडिया भाड़ में जाय। दोनों टीमों का स्कोर बराबर हो चुका था। भारत को जीत के लिए सिर्फ एक रन और चाहिए था। मैथ्यू की चौथी गेंद किसी तरह मनिन्दर ने खेली। कोई रन नहीं बना। पाँचवी गेंद पर मनिन्दर एलबीडब्ल्यू आउट हो गए। एक जीता हुआ मैच टाई हो गया। इसके लिए मात्र और मात्र रवि शास्त्री का स्वार्थी स्वभाव ही जिम्मेदार था। वे नाट आऊट रहना चाह रहे थे। टीम को जिताना उनकी प्राथमिकता नहीं थी। जो काम ग्रेग चैपेल ने कोच के रूप में किया था वही काम शास्त्री ने डाइरेक्टर के रूप में किया था। तब गांगुली को हटना पड़ा था और अब धोनी की बारी थी। भला हो धोनी की सूझबूझ की कि उन्होंने टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़कर मामले को रफा दफा कर दिया। कोहली की महत्वाकांक्षा की पूर्ति हुई और शास्त्री के अहंकार की तुष्टि भी हुई। भारतीय क्रिकेट को कोई बहुत ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ा। एक बार कपिल के जोड़ीदार रह चुके मनोज प्रभाकर ने स्टिंग आपरेशन के दौरान रवि शास्त्री का बहुत चर्चित इन्टव्यू लिया था। उसमें उन्होंने कपिल जैसे महान खिलाड़ी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। उन्हें मैच फिक्सर तक कहा था। ऐसा ओछा आदमी कोच के लिए कहीं से भी उपयुक्त नहीं था।
शास्त्री की कुंबले के प्रति असहिष्णुता और नफ़रत इस कदर बढ़ गई है कि उन्होंने आईसीसी की उस कमिटी से भी त्यागपत्र दे दिया है जिसके अध्यक्ष अनिल कुंबले हैं। कुंबले के गंभीर, शान्त व्यक्तित्व और क्रिकेट में उनके अतुलनीय योगदान के सामने शास्त्री कहीं नहीं ठहरते, फिर भी उनका यह सनकी व्यवहार दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की याद दिला देता है। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि अनिल कुंबले भारत के लिए अब तक के सर्वश्रेष्ठ कोच साबित होंगे।
मैं आपसे सहमत हूँ. कोच चयन समिति के निर्णय को गरिमा के साथ स्वीकार करने की जगह शास्त्री ने निरर्थक विवाद पैदा करके अपनी मूर्खता का ही परिचय दिया है.
मैं आपसे सहमत हूँ. कोच चयन समिति के निर्णय को गरिमा के साथ स्वीकार करने की जगह शास्त्री ने निरर्थक विवाद पैदा करके अपनी मूर्खता का ही परिचय दिया है.