कविता : धोखा
कैसे अब किसी पर विश्वास मैं करु?
पाके तुझसे धोखा अब मैं पलपल मरु
मुझे बरबाद करके तू भी ना आबाद रहेगा
सच्चे प्यार के लिए तू भी तरसता रहेगा
आसान होता है बने रिश्तों को तोड़ देना
पर मुश्किल है इन रिश्तों को जोड़े रखना
पर तू क्या समझेगा रिश्तों की नज़ाकत को
लेना होगा दुबारा ज़नम जानने मुहब्बत को
कोई ना होगा अब तुझसे प्यार करने वाला
नफ़रत है तुझसे तू है दिल से खेलने वाला
— सुवर्णा परतानी