मेरी ख़ामोशी
ख़ामोशियों की भी अपनी एक ज़ुबान होती है
कुछ ना कहकर भी सब कुछ कह देती है
ख़ामोशी दिल को कभी कचोटती है
तो कभी साजन की आँखों में बसती है
वो हो साथ तो ये ख़ामोशी ज़ुबान बन जाती है
गर हो दूर तो यही ख़ामोशी तन जलाती है
मेरी ख़ामोशी मेरी तन्हाई में गुनगुनाती है
दिल तक पहुँचाने की ये राह दिखाती है
ज़ुबान होती कड़वी ये ज़हर घोलती है
इसलिए ये ख़ामोशी मुझे मीठी लगती है