गज़ब सी बातें गज़ब सी रातें
गज़ब सी बातें गज़ब सी रातें ,हैं सारे दिन ये गज़ब से कब से ?
गज़ब ये करके , हमें भुला के , हमें रुला के गए हो जब से।
न खैर पूछी ना हाल पूछा , ना बस ये ही सवाल पूछा
के चलती हैं साँसे या रुक गयी हैं , हुए अकेले बेजान जब से ।
करू ये शिकवा या मांगू मोहब्बत , या कह दू कि अनजान तुम हो गए हो
आइना भी अब नहीं पहचानता है छीनी है मेरी पहचान जब से ।