गीतिका/ग़ज़ल

सुनो ये मदहोशी

सुनो ये मदहोशी आँखों में कहा से लाते हो ?
महकता है समां सारा क्या तुम जन्नत से आते हो ?

निगाहें चाँद की भी कुछ नीचे झुक जाती हैं
वो पूछता है ये नूर कहाँ से लाते हो।

ना होता है कोई बादल मैं फिर भी भीग जाता हूँ
आँखों से कोई रस प्यार का जब तुम बरसाते हो।

हमारी बातों में कुछ कड़वापन लगता है
तभी तुम आजकल कुछ गैरों से बतियाते हो।

आईना भी जलने लगा है आजकल तुमसे
जब अपनी तिरछी आँखों में तुम काजल लगाते हो।

जल्दी सोने लगा हु कुछ दिन से मैं
के अब तुम रोज़ मेरे इन हसीं ख्वाबों में आते हो।

चंदा तारे फूल बहारें सब बैठे हैं महफ़िल में
सुना है आजकल तुम प्यार के किस्से सुनाते हो ।

कोई पूछे जो तुमसे हमारे बीच का रिश्ता
मुमताज खुद को मुझको शाहजहाँ बताते हो।

विजय गौत्तम

नाम- विजय कुमार गौत्तम पिता का नाम - मोहन लाल गौत्तम पता - 268 केशव नगर कॉलोनी , बजरिया , सवाई माधोपुर , राजस्थान pin code - 322001 फोन - 9785523446 ईमेल - [email protected] व्यवसाय - मैंने अपनी Engineering की पढाई Arya college , Kukas , jaipur से Civil engineering में पूरी की है एवं पिछले 2 सालों से Jaipur Engineering College , Kukas , jaipur में व्याख्याता के पर कार्यरत हूँ । ग़ज़लें लिखना बहुत अच्छा लगता है ।