कविता

तो कोई गम न होता

वो ख़फ़ा नहीं है हमसे
होते तो कोई गम न था

वो बेवफा नहीं हमसे
होते तो कोई गम न था

वो बेरुखी न थी उनकी
होती तो कोई गम न था

वो बेदिली न थी उनकी
होती तो कोई गम न था

वो दूर न थे कभी हमसे
होते तो कोई गम न था

आज ये कहा तो क्यों कहा
न कहते तो कोई गम न था…

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “तो कोई गम न होता

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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