गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : वो रोती रही मैं आंख मलता रहा

वो रोती रही मैं आंख मलता रहा
वो सिसकती रही मैं चलता रहा।

हाथ रोके न उसने सब कुछ सहा
पर अधरों से उसने न कुछ कहा।

आँख उसकी, हथेली मेरी नम हुई
मैं कटा वृक्ष सा, जब उस पर ढहा।

फिर लिपटी वो ऐसी, मेरी बाजुए
गिला अपनी बताते हुए जब कहा।

हाल उसका वही हाल मेरा वही
आँख मेरी खुली तो जुदा थे जहाँ।

— कवि दीपक गांधी

दीपक गाँधी

नाम - दीपक गांधी पिता का नाम - टी आर गांधी पद - विकास खण्ड अकादमिक समन्वयक (उच्च श्रेणी शिक्षक) निवास - ग्वालियर म. प्र. रूचि - साहित्य , लेखन ( कविता, गजल) साहित्यिक सफर - 120 कविता, 80 गजल लिख चुका हूँ

One thought on “ग़ज़ल : वो रोती रही मैं आंख मलता रहा

  • विजय कुमार सिंघल

    स्वप्निल ग़ज़ल !

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