गजल
जिन्दगी भर को तुझे अपना बनाते हैं
जिन्दगी की शाम को हर पल लुभाते हैं
प्यार की राहें चलें मिल छोड़ नफरत को
भूल जो हमने कभी की अब भुलाते हैं
गलतियों को रोज ऐसे फिर न तुम देखो
जिन्दगी में रंग सारे हम सजाते हैं
अब मुहब्बत फल रही दिल में युगों से है
फासले जो साथ तेरे थे मिटाते हैं
नाव जैसी जिन्दगी है पार जाऊं मैं
राह चलते लोग क्यों ऐसे फसाते हैं
दिल खिलोना वो बना कर खेलता है क्यों
वो समझ हमकों पतंगा सा जलाते हैं
ढूढ़ते भगवान को हर धाम मिल हम सब
छोड़ दिल को क्यों उसे मठ में बसाते हैं
पास छुप छुप के हमारे वो चले आते
प्यार के दो बोल पर वो दिल लुटाते हैं
मैं बनी ऐसे पिया के अधर की मुरली
जो बना के आँख का काजल रिझाते हैं
माँग लूँ तुमको खुदा से फिर गवा के सब
दर्द दे जो आज दुनियाँ मे डराते हैं
— डॉ मधु त्रिवेदी
अच्छी ग़ज़ल !
अच्छी ग़ज़ल !