बचपन
बचपन के दिन कितने मस्ताने थे
आज जैसे फिकराने न थे
मन चाहे जहाँ चले जाते
खूब सबको खिझाते थे
सब अपने से थे बेखौफ हम थे
वो बन्दर सी उछलकूद करना
अपने साथियों के साथ डाल-डाल फुदकना
गुटके कंचे टंगडी जैसे ही तो
गेम हमको प्यारे थे
कूदा-कूदी करते थे खूब
मिल आवारगी खूब करते थे
आँख-मिचोली खेलते
मम्मी पापा से हो कर बेखबर सब
करते मस्ती सब
आज वो दिन कहाँ चले गये है
अपने कहने वाले बिछुड़ गये
कहाँ चले गये फुदकते डग
विनय है प्रभु से
अब तो वापस वो दिन ला दो
मुझे बच्चा फिर बना दो
— डॉ मधु त्रिवेदी
बहुत खूब !
बहुत खूब !