कविता

कविता : मेरा तिरंगा

सुनो, तिरंगा मेरे मन की बात तुझे सुनाऊं मैं,
तू है मेरे देश की शान यह सबको बतलाऊं मैं,
खिल उठता है मेरा मन जब लहराते तुम दिखते,
देश की आज़ादी की गाथा इसी तरह तुम लिखते,
रंग केसरिया का क्या वर्णन करूं मैं वीरों की ये शान है,
इस रंग की माथे पर बिंदिया हर नारी की आन है,
हर उमंग को ये जगाता तेरा यह हरा रंग है,
तुलसी, मेहंदी के पत्तों में भी महकता तेरा ये रंग है,
दोनों रंगों के बीच में तेरी सादगी हमें सीखाती है,
मन की कड़वाहट दूर हो जाती, होती मन में शान्ति है,
तेरे सफ़ेद रंग की चमक से शान्ति देश में बनी रहे,
बीच चक्र देता हमें गति को, गति हमारी बनी रहे,
बना के ओढनी ओढूं मैं इस तिरंगे की शान को,
केसरिया पगड़ी में देखती मैं अपने सरताज को,
मुझे गर्व है अपनी धरती माँ की बेटी कहलाने में,
मेरा तिरंगा सदा ऊंचा रहे सदियों- ओ- ज़माने में।

— सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)

One thought on “कविता : मेरा तिरंगा

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी सीमा जी, अत्यंत सुंदर रचना के लिए शुक्रिया.

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