कविता

कुंडलिया छंद””

चित्र अभिव्यक्ति……

साथी मेरे सीप का, मोती मत विखराय
स्वाती मेरे नैन से, नाहक मत बरसाय
नाहक मत बरसाय, जानती ये विष पीना
सीमा खुद सिखलाय, पलक जाने है जीना
कह गौतम कविराय, बिना दातों की हाथी
भले रूप सरखाय, महावत गरजे साथी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी13654228_10208886828639506_6050818940377475293_n

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ