लघुकथा : समीक्षा
“एक दम नीरस ओर ‘सपाट बयानी’ है ये तो”, वरिष्ठ बड़बड़ाए. पास ही बैठे कनिष्क ने उनके पैरो को हलके से दबाया ओर उनकी अाँखो मे अंदर तक झाँका फिर कहा- “गुरुदेव नई नई जुड़ी है इस विधा मे अभी शुरुवात है!”
“लेकिन वो है कहां? दिखाई नही दे रही” वरिष्ठ ने उत्सुकता से पूछा. कनिष्ठ ने एक तरफ इशारा किया, वरिष्ठ अपनी अांखों से सूक्ष्म निरीक्षण करने लगे. अब शायद उनको उभार नज़र अाने लगे थे उसके लेखन में.
— आलोक खरे