कविता : भ्रम
इन्सान जब
करता है मिसयूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने बो लखपति
कभी रहे बिन शूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने वो आज्ञाकारी
कभी डिक्टेटर यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने वो ब्रह्मचारी
कभी करेक्टर लूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज।
कभी पिता को मारत है
कभी पिता की बूझ।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने वो दारा सिंह
कभी है मोशन लूज़।
भगवान भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी खाय वो 5 स्टार में
कभी फांको का यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी वो सेवा करे समाज की
कभी कहे एक्सक्यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने वो धर्माव्लम्वि
कभी अधर्म का यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी वो गाली देत सभी को
कभी देवता पूज।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी बने वो सच्चा साथी
कभी एनेमी यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी करे वो चोरी सबकी
कभी हरिश्चन्द्र चूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी वो आदर देता सबको
कभी देत एब्यूज।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
कभी वो माला फेरत जग में
कभी न देवता पूज।
भगवन भी सब देखके
होता है कन्फ्यूज़।
कभी ज्ञान के दीप जलत है
कभी बेवकूफी यूज़।
भगवन भी सब देख के
होता है कन्फ्यूज़।
करो हमेशा नेक काम
करो नीति ही यूज़।
कथनी करनी एक करो
न ईस्वर भी कन्फ्यूज़
मिले हमेशा अच्छा ही
जब होगा अच्छा ब्युज़।
— कवि दीपक गांधी
वाह्ह्ह, सुंदर रचना