“गीतिका छंद”
बह्र, 2122, 2122, 2122, 212
मोहना तोरी बंसी है, चाह चित मोरी बसी
चोर जाते हो कन्हाई, राग सखियों की हंसी।
बाढ़ यमुना की चढ़ी है, डूब जाती आस जी
सून लागे रात कारी, नट नचाओ रास जी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
बह्र, 2122, 2122, 2122, 212
मोहना तोरी बंसी है, चाह चित मोरी बसी
चोर जाते हो कन्हाई, राग सखियों की हंसी।
बाढ़ यमुना की चढ़ी है, डूब जाती आस जी
सून लागे रात कारी, नट नचाओ रास जी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी