बरसात
ओ…..बरखा तू तो है मेरी संगिनी
बड़ी दिलकशी बड़ी है तू मनचली
कभी साथ अपने ढेरों ख़ुशियाँ लाए
कभी अगन बढ़ाए तो कभी तन्हाई लाए
कभी ये तन मन को बड़ा हर्षाए
कभी जलते मन को ठंडी फुआर से शमाए
कभी किसी की यादों में उलझाए
तो कभी मन के घाव को सुलझाए
कोई तेरे साथ ख़ूब बहकता है
तो कोई तेरे आने से बड़ा दहकता है
तू है क्या? तेरे कितने हैं ये रूप
एक बार मुझे मिलना देखूं तेरे रंगरूप
……..$..सुवर्णा..$………
प्रिय सखी सुवर्णा जी, अत्यंत सुंदर बरखा-गीत के लिए शुक्रिया.
बहुत सुन्दर !