शारदे वंदना
मैं हूँ शरण तेरी मुझे माँ शारदे वरदान दो
मैं मूढ़ हूँ माँ आज मुझको भी दया का दान दो
सुर साध लूँ माँ आ बिराजो कंठ में मेरे कभी
पूरी करूँ मैं साधना इतना मुझे तुम ज्ञान दो
रख हाथ सर पर प्यार का मैं आस लेकर हूँ खड़ी
तम दूर कर अज्ञान का खुशियों भरी मुस्कान दो
कर जोड़ मैं विनती करूँ इस दास का हित जान माँ
सुर तान लय मैं साध लूँ इतना मुझे संज्ञान दो
पथ आज आलोकित करो हूँ राह से भटकी हुई
इस भीड़ में माँ शारदे मुझको जरा पहचान दो
मैं बंद कर बैठी नयन नित ध्यान तेरा धर रही
तम हारिणी जग तारिणी मेरी तरफ भी ध्यान दो
रमा प्रवीर वर्मा