ग़ज़ल : तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई
तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई
लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई
पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफहों को
क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई
न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत
बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई
सियासतों में बगावत नई नहीं यारों
कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई
सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को
कोई फरेबी यहाँ और चालबाज कोई
नचा रहे सभी एक दूसरे को यहाँ
बजा रहा कोई ढपली कहीं पे साज कोई
पँहुचते ही नहीं पैसे गरीब तक पूरे
कमाई ले उड़े जब बीच में ही बाज़ कोई
— राजेश कुमारी ‘राज’
बहुत खूब !
सादर आभार आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी |