शिशुगीत

शिशुगीत – १९

१. तितली

रंग-बिरंगी होती तितली
जाने किस पल सोती तितली
फूल चमन के जिसदिन सूखें
झट उदास हो रोती तितली

२. भँवरे

भँवरे नहीं तनिक मन भाते
भन-भन कर वे मुझे डराते
नहीं बूँदभर शहद बनाना
फूलों का रस क्यों पी जाते?

३. मधुमक्खी

मधुमक्खी की बात निराली
डंक मारती पर दिलवाली
मीठा-मीठा शहद बनाकर
भिजवा देती भर-भर प्याली

४. ततैया

कुछ पीले, कुछ लाल हैं
करते बहुत बवाल हैं
मारें यदि ये डंक तो
होने हाल बेहाल हैं

५. पतंगे

कीट-पतंगों का ये मौसम
किया नाक में है सबने दम
बल्ब ऑन करते आ जाते
गोल-गोल ज्यों नाचें छम-छम

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन