कविता
तेरे सुगंधित सुधियों में
प्रतिपल खोया रहे मन
और रहे हर क्षण
मेरा महका-महका
जब मुंदती हूँ पलके
तेरा ही ख़याल महकें
और खुले नयनों में
तेरा प्रतिबिम्ब महके
रातरानी के संग संग
रात भर तेरे स्वप्न महकें
अस्मरण मात्र से ही तेरे
मेरा हृदय महके
छुआ था एक बार खयालों में
अब तक मेरा बदन महके
तुम्हें छू कर जो आई हवा
मेरी हर साँस महके
जबसे बसाया है तुम्हें
उर में स्पंदन महके
तुमसे जो भी लगाई
हर वो आस महके
माना जबसे तुम्हें अपना
मेरा जीवन महके।
-सुमन शर्मा