ग़ज़ल
मुझे अपने से तुम जुदा न करो
नही मुमकिन तो मेरे जीने की दुआ न करो।
मर जायेंगे यूँ ही तड़प के तेरे जुस्तजू में
बनके चारागर मेरे क़ातिल मेरी दवा न करो।
नही मुमकिन कि हर बार हो तुम वाज़िब
हूँ गुनहगार,चंद लम्हों में फैसला न करो।
निभाओ शौक से रंजिशें नही गिला कोई
आड़ में दोस्ती के मगर तुम कोई दगा न करो।
समझ के प्यार की मूरत चाहें करो इबादत
निकलेंगे सनम पत्थर के तुम उन्हें ख़ुदा न करो।
-सुमन शर्मा