कविता

“दोहा मुक्तक”

प्रदत शीर्षक — सुगंध, सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू आदि

उपवन मेरा महक गया, आहट पिय की पाय
अंगड़ाई लेने लगी, डाली डाली छाय
सौरभ सुगंध सुरभि यह, इतराए दिन रात
मादकता ख़ुश्बू लिए, मन चंचल बहुताय।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““दोहा मुक्तक”

  • कालीपद प्रसाद

    आदरणीय महातम मिश्रा जी ,बहुत सुन्दर दोहा मुक्तक है | कृपा करके
    अंगड़ाई लेने लगी, डाली डाली छाय
    २१२२ २२ १२…..१४ मात्रा है , देख लीजिये
    सादर

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय काली प्रसाद जी, बहुत अच्छा लगा आप ने सुझाव दिया, अंगड़ाई को अगड़ाई भी पढ़ा जाता हैं एक मात्र पतन की जगह है अत: उसी आधार पर लिखा गया है, हार्दिक आभार सर

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