वो इंसान हो सकता है
अँधेरे में जो साथ छोड़ दे ,
वो साया होता है ,
ख्वाब नहीं ।
कच्चे धागे सा जो टूट जाए ,
वो रिश्ता होता है ,
रिवाज नहीं ।
पल पल में ढल जाए वो
समय हो सकता है
अतीत नहीं ।
किसी गम से गुम हो जाए
वो हंसी होती है
मुस्कान नहीं ।
जो सबसे छिपा रह सके
वो खुदा हो सकता है
आंसू नहीं ।
जो जीना भूल जाता है
वो इंसान हो सकता है
जानवर नहीं ।
— सचिन परदेशी ‘सचसाज’