कविता : वीरो तुम्हें सलाम !
न तो दिन था तुम्हारा कोई
न रात, न कोई अपनी शाम !
न घर बार अपना याद तुम्हें
न भेजा कोई तुमने पैगाम !
तुम्हारे लिए तो पूजनीय केवल
ये रण भूमि ही तुम्हारा धाम !
इस देश पर मर मिटने वालों
तुम्हे सदा है हमारा सलाम !
बहाया लहू का इक इक कतरा
न की परवाह क्या होगा अंजाम !
हँसते मुस्कराते चढ़े फांसी पर
न लगाया देशप्रेम पर विराम !
इन्कलाब जिंदाबाद कहते ही
रखी नींव और इक मुकाम !
हलाहल किया उन गौरों को
किया जिन्होनें जीना हराम !
वीर गति को हुए प्राप्त तुम
पर “अमर” रहेगा तुम्हारा नाम !
भारत की जयकार से पहले
गूंजेगा तुम सब का ही नाम !
— डॉ सोनिया गुप्ता