कविता

कविता- अजगर

देखो खो चुके हैं कुछ नेता कैसे अपना ईमान-धरम
सत्ता के लिए तो बेच डालेंगे ए अपना ही वतन ।
कुर्सी की ऐसी लालच है कि सब बन बैठे धृतराष्ट्र हैं
इनके चक्कर में देखो मुश्किल में हिन्दराष्ट्र है ।।

    भारत माता के आंसु देखो कैसे है बह रही
देश की एकता को भी इनकी लालसा है निगल रही ।
सेक्युलर कहलाने को पाखंड का है साथ दिया
वोट के खातिर देखो धर्म को धर्म से बांट दिया ।।

पत्थरबाजों को आज देखो मिल गई आवाज है
बुरहान के हमदर्दों पे इन्हे होने लगा अब नाज है ।
देश की खातिर मरने वाला वीर सिपाही आज गैर हुआ
देशहित की बात कही जो किसीने बंदे संग इनका बैर हुआ ।।

कैसी दलाली खाते हैं ए समझ ना मुझको कुछ आवे
जहां की हवा-पानी लेते हैं वही देश न इनको अब भावे ।
पावर के लिए तो ए सायद पूरा जहां ही बेच दें
ए सोवैंगे नोट के गद्दों पे चाहे देश लेटा रहे कांटों के सेज पे ।।

जनता भी क्यों खामोश है जब ए यूं देशविरोध हैं कर रहें
सड़कों पे आती नहीं जनता क्यों जब ए देश को हैं बेच रहें ।
गद्दारों का समर्थन जिसने किया उसको अब तो देश निकालो
पापीयों को अब तो झट से सेना के हवाले कर डालो ।

             जिस सेना से ए जलते हैं
उसीके घेरे में इनकी सांसे हैं चल रही ।
अब तो सुन लो ए दिल्लीवालों
जरा इनसे सेना का सुरक्षा भी तो हटालो ।।

—  मुकेश सिंह

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl