बचपन की चाह
बारीकियों से
सीखता ही आ रहा हूं,
चाहता हूं मैं
जरा सी जिंदगी।
अनुभवों का
मैं लबादा ओढ़कर,
ना किसी को थोपना
हूं चाहता।
जाल सा
मैं चाहता हूं तोड़ना,
जो है घिरा
इस उम्र में,
है भले पचपन की
थापें पीठ पर,
एक बचपन चाहता हूं
सींचना।