लघु कथा : मौत की कीमत
महिला बहुत देर से आफिसर के सामने गिडगिडा रही थी – “सर कैसे भी करके मेरे पति को बचा लीजिये. मुझे इनके इलाज के लिए दस हजार रुपयों की सख्त जरुरत हैं. हम गरीब के पास कोई बचत भी तो नहीं हैं. सर मेरा पति आपके ऑफिस का स्टाफ हैं. इस नाते कुछ कीजिये न सर. डॉ.साहब ने इन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में रिफर किया हैं. प्लीज सर, प्लीज, मेरी मदद कीजिये न !” महिला रोने लगी. काफी देर बाद आफिसर बोला – ” माफ़ कीजिये , मेरा भी हाथ बंधा हैं. मैं आपकी मदद चाहकर भी नहीं कर सकता.” इस उत्तर से महिला और भी बिफर पड़ी. आशा की शेष भी अब नहीं बची थी , बस वह रोये ही जा रही थी ……………अब वह कैसे अपने पति का इलाज करवाएगी ? जबकि पहले ही सर पर कर्ज का बोझ पड़ा है, एक आखरी आशा थी वह भी टूट गयी.
शाम को कार्यालय में महिला का फोन आया ‘उसके पति नहीं रहे’, सभी शोका कुल हुए जो भी हो हमारे बीच से एक सहयोगी चले गए थे.
दुसरे दिन ऑफिसर जी.आई.एस. के दो लाख रूपये का चेक मृत स्टाफ के पत्नी के नाम लिख रहा था. यह कैसी विडम्बना हैं? जीवित काल में व्यक्ति की कोई कीमत नहीं रही. रुपयों के अभाव में व्यक्ति इलाज के वगैर चल बसे और आज मौत के बाद लाखो रूपये दिए जा रहे थे.