वाचिक राधा छंद मुक्तक गीत : आज जब मैं माँ बनी…
नीर आँखों में लिए जब याद आई माँ
पोंछ मेरे आँसुओं को मुस्कुराई माँ
हाथ मेरे शीश पर अपना धरा उसने
मुश्किलों में भी निभाना फिर सिखाई माँ
बाँह मेरी खुद पकड़ के जब चलाई माँ
जो सही थी राह मुझको वो दिखाई माँ
राह के पत्थर मुझे खुद ही उठाने हैं
लड़खड़ा कर खुद सँभलना भी सिखाई माँ
गर्दिशों की पीर भी सबसे छुपाई माँ
भूख अपनी मार के मुझको खिलाई माँ
खुद सदा सोती रही टूटी चटाई पर
और मुझको रोज खटिया पे सुलाई माँ
मस्तियों के वक़्त ने जब जब भुलाई माँ
रास्तों में हर कदम पर दी दिखाई माँ
मैं गगन में उड़ रही थी भूल कर उसको
आज जब मैं माँ बनी तो याद आई माँ
——–राजेश कुमारी “राज”