मत्तगयंद/मालती सवैया
नाचत, गावत शोर मचावत, बाजत सावन में मुरली है
भोर भयो चित चोर गयो भरि, चाहत मोहन ने हर ली है॥
साध जिया मग का यह चातक, ढूंढ़त ढूरत घा कर ली है
गौतम नेह बिना नहि भावत, काजल नैनन में भर ली है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
नाचत, गावत शोर मचावत, बाजत सावन में मुरली है
भोर भयो चित चोर गयो भरि, चाहत मोहन ने हर ली है॥
साध जिया मग का यह चातक, ढूंढ़त ढूरत घा कर ली है
गौतम नेह बिना नहि भावत, काजल नैनन में भर ली है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी